लघुकथा

सबसे सुरक्षित घर

 

फोन की घंटी बजते ही नेता जी के कान खड़े हो गए । रक्तिम लालिमा लिए हुए चेहरा हल्दी की तरह पिला पड़ गया । यूँ लग रहा था जैसे किसी ने रक्त की एक एक बूंद निचोड़ लिया हो । घिग्घी बंध गई थी उनकी । बात ही कुछ ऐसी थी । कुख्यात आतंकवादी ने उनको फोन पर धमकी दी थी ‘ मात्र 72 घंटे हैं आपके पास नेता जी ! अगले 72 घंटों के अंदर आपको भगवान के पास भेज दिया जाएगा । यात्रा की तैयारी पूरी कर लीजिए । ‘ कहकर फोन काट दिया गया था । नेताजी की शिकायत पर फोन करने वाले का पता लगाने की कोशिश की गई लेकिन कुछ पता नहीं चला । इस बीच उस बदमाश ने अलग अलग नंबरों से छह बार नेताजी को फोन करके अपनी धमकी दुहरा दी । नेताजी के हृदय की धडकनों के साथ ही उनके सोचने की गति भी बढ़ गई । अपनी सुरक्षा व्यवस्था में उन्हें बहुत कमी नजर आने लगी । ‘ सुरक्षा व्यवस्था तो इंदिराजी और राजीव जी की भी बहुत तगड़ी थी । लेकिन क्या हुआ ? मुझे ही कुछ करना होगा । ‘ अचानक उनके चेहरे की चमक बढ़ गई । सुरक्षा पर तैनात दरोगा को नजदीक बुलाया और आव देखा न ताव पिल पड़े उस बेचारे पर नेताजी । लात , हाथ , घूंसों से मारने के साथ ही मुंह से अश्लील गालियों की बौछार भी जारी थी । दरोगा जी कब तक संयम रखते । उन्होंने वर्दी पर हाथ उठाने के अपराध में कार्रवाई करने की धमकी दे ही डाली । नेताजी ने भद्दी सी गाली उछालते हुए कहा ” अबे बेवकूफ ! हिम्मत है तो कर कार्रवाई ! ” दरोगा ने सिपाहियों को ईशारा किया । फिर भी रस्सियों में जकड़े नेताजी को थाने ले जाते हुए अपने भविष्य को लेकर दरोगा जी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं वहीं नेताजी अब बेखौफ नजर आ रहे थे । उनके चेहरे की रंगत लौट आई थी । अब सबसे सुरक्षित घर के मेहमान जो बन गए थे ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “सबसे सुरक्षित घर

  • जवाहर लाल सिंह

    जय हो! जय हो! सबसे सुरक्षित घर! क्या व्यंग्य साधा है आपने!

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