कविता

4 कवितायेँ

माँ

माँ करूणा की बहती दरिया
माँ ममता का बहता झरना
माँ प्रेम की भरी गगरिया
माँ पूजा की थाल।।

माँ बसन्त की बहार है
माँ सावन की फुहार
माँ फूलों की सुगऩ्द है
माँ बच्चे का प्राण है ।।

माँ की हर साँस में आशीर्वाद
माँ का हर पल न्योछावर है
माँ हर नापाक इरादे को
काल रूप यायावर है

माँ के रूप तो निराले है
सागर चरणो को धोते है
माँ ने तो हमको जन्म दिया
किया कोटि कोटि उपकार

माँ का स्वरूप अतुलित विराट
माँ चारो धाम है
ईश्रवर की स्तुति से पहले
माँ के चरणों को नमस्कार ।।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
कालिका प्रसाद सेमवाल
[8/17, 05:34] K P Semwal: जीवन के संघर्ष
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संघर्ष जीवन में
अनेक नित नये अनुभूतियां कराते है।
सूर्य स्वयं जलकर
सारे संसार को
प्रकाशित कर देता है
जैसे वृक्ष सारे संताप सहकर
फल ,फूल, व शीतलता
प्रदान करते हैं।

किन्तु
इंसान संघर्षो से
मुकाबला करने के बजाय
घबराकर जीवन की
इति श्री क्यों कर लेता है?
जीवन से घबराना
और फिर भागना कायरता है।

क्यों कि
ईश्रवर की बनाई
इस अनुपम कृति को
समाप्त करने का
हमें कोई अधिकार नहीं है
जब संसार से
विदा लेना ही है
तो क्यों न हम
अपने दायित्वो का
निर्वहन करते हुये
काँटो में भी क्यों न मुस्कुराते

नदियों के समान
निस्वार्थ जल प्रदान करे।
वृक्ष के समान
मीठे फल दे।
दीपक के समान
ज्ञान का प्रकाश
फैलाते हुये
अपने जीवन को
सार्थक करें।
✍कालिका प्रसाद सेमवाल
[8/17, 05:34] K P Semwal: नारी तुम्हे नमन
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ईश्रवर की सन्तान है, दोनों नर और नारी ।
प्रकृति ने दोनों में ही, शक्ति भरी है सारी ।
समाज ने दोनों में, अन्तर कर दिया भारी ।
एक को ताकतवर माना, दूसरे को बेचारी।
सबला को अबला मानकर,भूल की है भारी ।
दो आंखों का सिद्धान्त,वर्तमान में भी जारी।
एक आंख से पुरूष, व दूसरे से देखते नारी।
निरन्तर कार्य करने पर,मिलती है इसे कटारी।
घर, स्कूल, समाज में क्यों भेद अभी भी जारी।
अभी भी ढोनी पड़ रही है, दुःख भरी पिटारी।
कुछ ना समझ शब्दो से आज भी करते है ,बमबारी।
सर्वत्र नीचा दिखाने की, फैली है महामारी।
सहनशीलता को समझा है, उसकी कमजोरी ।
कौन सा क्षेत्र ऐसा है,निभाई न हो जिम्मेदारी ।
धनार्जन के बाद भी नहीं बनी है,सम्मान की अधिकारी ।
घर,परिवार, समाज, में ,संघर्ष अभी भी है जारी।
इतने कष्टो के बाद भी, नहीं अभी यह हारी।
अवसर मिलने से ही, सम्भव होगी बराबरी।
हिम्मत तुम में बहुत अधिक है,धन्य धन्य हो नारी।
ईश्रवर तुम्हे और शक्ति दे, होगे उसके आभारी ।।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
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[8/17, 05:42] K P Semwal: मातृभूमि
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मातृभूमि के लिये नित्य ही,
अभय हो जीवन दे दूंगा ।
तन ,मन , धन निस्वार्थ भाव,
सर्वस्व समर्पित कर दूंगा।

जिस मातृभूमि में जन्म लिया है,
जिसके अंक नित खेल हूँ।
शिवा जी दधीचि की मिट्टी का
मत भूलो मैं चेला हूँ।

जहाँ आदिकाल से वीरों ने
गिन- गिन कर शीश चढा़ये है।
वीर शिवाजी, महाराणा ने,
जीवन दांव पर लगाये है।

जिस मातृभूमि को देख व्यथित,
हर मानव शोला बना सदा।
अत़्याचार उन्मूलन के लिए ,
हर तन बम गोला बना सदा।

जहाँ कर्मवती लक्ष्मी बाई ने,
भारी धूम मचाई है ।
उसी देश का अंजल खाकर,
मैंने शिक्षा यहां पाई है।

मातृ भूमि तो अग्र खडी़,
प्रस्तुत पृष्ठ यह निज जीवन।
जन्मभूमि पर मुझको गौरव,
न्यौछावर कर दूं यह जीवन ।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
🌹कालिका प्रसाद सेमवाल🌹

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171