हास्य व्यंग्य

अनुशासन के लिए तानाशाही ही सही…

उन्होंने कहा है तो सच ही होगा।यदि अनुशासन में किसी को लायेंगे तो तानाशाह तो कहलायेंगे ही।घर हो,परिवार हो,दफ्तर हो,सदन हो,समाज हो या देश हो सब अपने अनुरूप हो,सभी अपने अनुसार चलें,शायद यही तो अनुशासन है।लेकिन व्यवस्था सुधारने या व्यवस्था करने के नाम पर अनुशासन लागू कर भले ही हम इसे अनुशासन पर्व का नाम दे दें,चंगेजी घोड़े कहाँ मानने वाले!
घर में मुखिया की अनुशासन की हुकूमत तभी तक चल सकती है जब तक सत्ता सूत्र खासकर अर्थ सत्ता निरंकुश रूप से मुखिया के हाथ में हो।यदि मुखिया ने अपने सत्ता सूत्र मुखियानी के हाथों में थमा दिये तो समझो हो गई पूरी राम कहानी।फिर तो मुखियानी की हिटलरशाही चलेगी और जमकर चलेगी।यह भी तभी तक जब तक कि अगली पीढ़ी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती।फिर कोई नया तानाशाह जन्म ले लेगा।
सत्ता सूत्र एक जगह टिकते भी कहाँ हैं, तब फिर तानाशाही कितने दिन तक!अनुशासन यानी नियमों में बंधकर रहना।बंधन में रहना किसे पसंद है।एक दार्शनिक ने कहा भी था कि – “मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है लेकिन सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा जाता है।”स्वाभाविक ही है कि वह इन जंजीरों से मुक्ति का प्रयास करता रहता है।मजबूरी जब तक बांधकर रखे तभी तक तो बंधे रहेंगे, तभी तक अनुशासन भी,उसके बाद तो खुला आसमान।
ऐसा ही कुछ मैंने एक घर में अनुशासन तोड़ने का नतीजा देखा,पूरा घर बिखर गया था।घर का हर सदस्य मनमानी करने पर आमादा था।घर के मुखिया ठीक से काम नहीं कर पा रहे थे बल्कि यूं कहें कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा था। ऐसे में उनको घर चलाना मुश्किल लगने लगा।तब उन्होंने एक कठोर निर्णय लिया और घर के सभी सदस्यों की सुविधाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया।उनके घुमने-फिरने,बोलने पर मर्यादा का बंधन भी।चूंकि परिजन उनके ऊपर ही निर्भर थे ,इसीलिए उन्होंने हरेक बात को स्वीकार लिया।जिन्होंने थोड़ा बहुत विरोध का साहस दिखाया,उनपर तरह तरह के प्रतिबन्ध लगा दिये गये।
घर का हरेक सदस्य एक दूसरे से पूछने लगा कि आखिर यह हिटलरशाही कब तक चलेगी।उधर घर के मुखिया को लगने लगा कि अब तो अनुशासन पर्व सा माहौल हो गया है।इस दौरान घर में विरोध का माहौल तैयार होने लगा क्योंकि किसी को बन्धकर और अनुशासन में रहने की आदत नहीं थी।थोड़े ही दिनों में बगावत का विस्फोट हुआ जिसका परिणाम यह हुआ कि पूरा घर परिवार बिखर गया ।घर पर हर कोई हुकुमत चलाने लगा और घर के मुखिया को घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
पड़ोसी की यह गत इसलिए बनी कि पहले उन्होंने अनुशासन नहीं रखा और बाद में नियंत्रित किया तो तानाशाह कहलाए।लेकिन मैंने तो शुरू से ही तय कर रखा था कि किसी की नहींं सुनूंगा, सारे फैसले खुद ही करूंगा।भले ही मुझे तानाशाह कहें,डिक्टेटर कहें,हिटलर कहें,किसी के दबाव में नहीं आऊंगा।मुझे घर में अनुशासन पर्व के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।मैं तो अपने तरीके से घर चला रहा हूँ।बस मन में यह भय जरूर समाया हुआ है कि कहीं ऐसा विस्फोट न हो कि सत्ता सूत्र ही हाथों से छिन जाएं और अनुशासन भंग हो जाए।फिर भी अनुशासन लाना जरूरी है चाहे सब तानाशाह कहते हैं तो कहते रहें ।मुझे परवाह नहीं।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009