कविता

इंतज़ार

कभी यूँ भी हो
तुम करो मेरा इंतज़ार
जब भी तेज़ हवा का झोंका
खोले खिड़की के पट
तुम बरबस देखो उस ओर
शायद मैं वहाँ तो नहीं…
और मैं ….
मैं बहती जाऊं हवाओं संग
दूर ..बहुत दूर …
कभी यूं भी हो …
तुम ढूंढो बारिश की बूंदों में मुझे
महसूस करो मिट्टी से उठती
सौंधी सुगंध में मेरी महक
और मैं ….
मैं दूर किसी उपवन में
एक नन्ही सी कली पर
चमकती रहूं बूंद बनकर
और तुम…..
तुम जागते रहो मेरे इंतज़ार में
पूरी रात …
जैसे मैं चाहती थी
तुम जागो मेरे संग ..
पर तुम्हें कहाँ पसंद है जागना !!
पास आते ही सोने लगते
और मैं….
मैं जागने की लालसा लिए
बार-बार आती पास तुम्हारे ..
अब यूँ भी हो …
जागते रहो तुम मेरे लिए ..
और मैं ….मैं ……

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - priyavachhani26@gmail.com