कविता

कविता – बेटी की अहमियत

धन की लालसा
मन में
जगाते हो,
बेटी को पराया धन
बोल गर्भ में गिराते हो।
कहते है ,के बेटा
वंश बढायेगा,
यदि बहू न आई
आंगन
तो किलकारी
कौन गूंजायेगा।
हे मानुष यह
जघन्य अपराध ही
मनुष्य की हार है,
बेटी बिन न
चल सकता
घर- परिवार है।

शालू मिश्रा, नोहर (हनुमानगढ)

शालू मिश्रा नोहर

पुत्री श्री विद्याधर मिश्रा लेखिका/अध्यापिका रा.बा.उ.प्रा.वि. गाँव- सराणा, आहोर (जिला-जालोर) मोबाइल- 9024370954 ईमेल - shalumishra6037@gmail.com