लघुकथा

चोर या डाकू

एक बच्चा गरीब घर में पैदा हुआ था । माँ बाप ने नाम रखा नरेश याने बादशाह । गरीबी से तंग आकर उसने चोरियां शुरू कर दी । कई साल एक किसी को पता न चला चोरियां कौन कर है । आखिर एक दिन उसके गाँव वालों को पता चल ही गया की यह चोर है । बहुत मार भी पड़ी पुलिस ने भी मारा कुछ दिन बंद करके छोड़ दिया । अब जिधर जाए लोग उसे चोर चोर कहते । उसे कोई फर्क नहीं पड़ता ।  वह इस नाम का आदी हो गया ।

वह बड़ा हो गया । अब उसने बड़ा आदमी बनने की सोची । उसके मन में आया चोरी क्यों करूँ ? क्यों न कोई ऐसा काम करूँ की माल भी हाथ बड़ा लगे, लोग भी पकड़ने में डरें । उसने लोगों को रास्ते में लूटना शुरू कर दिया । कोई कार से जाता तो रास्ता रोककर कार छुड़ा कर डरा धमकाकर पैसा, भी कार भी लूट लेता ।  एक दिन पकड़ा गया जेल हुई । एक सज्जन आये छुड़ा कर ले गए । बहुत रईस थे ।  उसने समझाया देखो जो तुम कर रहे हो इसमें रिस्क ज्यादा है फायदा कम, एक काम करो अपनी लूट का आधा मुझे दे दिया करो । तुम जनता को लूट कर मुझे दो, मैं तुम्हें नाम दूंगा तुम्हें कोई पकड़ नहीं पायेगा । धीरे धीरे इलाके में उसका दबदबा कायम हो गया । उसने अपने बचपन के साथियों को बैंक लूटने के काम में लगा दिया खुद गरीबों को लूटने लगा ।

एक दिन वो अपने गांव कार में पहुंचा लोग कहने लगे चोर चोर, चोर आ गया । यह सुनकर वो आग बबूला हो गया कहने लगा मैं चोर नहीं हूँ चोर कहकर मेरा अपमान ना करो । लोगो ने कहा चोर नहीं तो क्या कहें । वो कहने लगा मैं बड़ा आदमी हो गया हूँ चोरी चकारी जैसी छोटी चीजें अब मेरा काम नहीं । मैं अब डाकू हूँ । बड़े बड़े अमीर मेरे साथ हैं।  वो ज़माना गया जब डाकू अमीरों को लूटकर गरीबों को दिया करते थे, अब गरीबों को लूटने कर अमीरों को देता हूँ । अब तुम लोग मेरा कुछ बिगाड़ नहीं पाओगे । गांव वालों डर गए उन्होंने उसे फूल माला पहनाई कहा आपकी जय हो ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।