राजनीति

नवजोत सिद्धू और गले मिलन

18 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण के अवसर पर नवजोत सिंह सिद्धू उनके निमंत्रण पर पाकिस्तान गए थे । नवजोत सिद्धू किसी सरकारी मिशन के अंतर्गत वहां नहीं गए थे वह वहां पाकिस्तान के प्रधान मंत्री के व्यक्तिगत निमंत्रण के तहत वहां गए थे । वहां वह पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा से गले मिले । उनके पाकिस्तान जाने को लेकर और वहां बाजवा के गले लगने पर देश भर में बवाल (हुआ नहीं) खड़ा कर दिया गया ।

यदि इस पूरे किस्से का विश्लेषण किया जाए कि उनके इस समारोह में भाग लेने से देश को क्या नुक्सान अथवा फायदा हुआ ? पाकिस्तान ने उनके आने के उपलक्ष में भारतीयों के लिए करतारपुर गुरूद्वारे जाने के लिए वीसा की अनिवार्यता ख़त्म कर दी । निष्कर्ष यह निकलता है कि करतारपुर बार्डर खुलने से दुनिया भर के सिख भाइयों की एक बरसों पुरानी इच्छा पूरी हो गयी । हिन्दुओं के लिए जो महत्त्व अयोध्या, मथुरा का है, क्रिश्चनो के लिए जो महत्त्व ईसा के जन्मस्थान का और जीसस को सूली दिए जाने के स्थान का है मुस्लिमों के लिए जो महत्त्व मोहम्मद पैगम्बर के जन्मस्थान का है वही महत्व सिखों के लिए करतारपुर का है । यह स्थान सिख धर्म के संस्थापक उनके प्रथम गुरु नानक देव जी से जुड़ा है ।

सन 1522 में स्वयं गुरु नानक जी ने इस शहर को बसाया था । उन्होंने इसका नाम ईश्वर ( पंजाबी में करतार ) के नाम से करतारपुर रखा । गुरु जी यहाँ पर अपने अंतिम समय तक 18 वर्ष तक रहे और उन्होंने अपना शरीर भी यहीं पर त्यागा । यहीं पर वो खेती करके अपनी जीविका चलाते रहे । यहाँ पर आज भी उसी जगह पर खेती होती  है और वहां पर उगाई गयी फसल से गुरु का लंगर चलता है । उनके शरीर छोड़ने के बाद हिन्दू और मुसलमान दोनों उन्हें अपना पीर बता कर अपना हक़ जताने लगे । एक संत ने वहां आकर कहा कि आप झगड़ा क्यों करते हैं स्वयं नानक जी से पूछ लीजिये । जब उनकी चादर हटाकर देखा तो वहां उनके शरीर के स्थान पर फूल ही फूल पड़े थे और शरीर नहीं था । हिन्दुओं ने उन फूलों का अंतिम संस्कार हिन्दू रीती से किया मुसलमानों ने फूलों को गाड़ कर वहां कब्र बना दी जो आज भी वहां है ।

1947 में भारत विभाजन के समय यह भाग पाकिस्तान को दे दिया गया । यह स्थान भारत पाकिस्तान बार्डर से सिर्फ तीन किलोमीटर कि दूरी पर पाकिस्तान में  है । कितनी बड़ी विडंबना है कि इतने ऐतिहासिक महत्त्व के स्थान को अंग्रेजों द्वारा पाकिस्तान को दे दिया गया वह भी भारत से तीन किलोमीटर कि दूरी पर । वहीँ दूसरी ओर जब लन्दन से रेडक्लिफ नाम का अफसर भारत पाकिस्तान विभाजन को मूर्त रूप देने भारत आया तो उसे यहाँ के बारे कुछ भी पता नहीं था, कौन सा भाग कितने महत्व का है उसे नहीं पता था । उसने सिर्फ नक्शा सामने रख कर लकीर खींचनी शुरू की कौन सा भाग पाकिस्तान को दिया जाए कौन सा भारत को । पहले उसने लाहौर भारत कि तरफ रखा फिर उसे पता चला कि लाहौर तो एक बड़ा शहर है ओर पाकिस्तान को एक बड़ा शहर देना चाहिए तो उसने फिर से लकीर में फेर बदलकर लाहौर पाकिस्तान कि तरफ कर दिया । जब इतनी आसानी से लकीरें खींची जा रही थी तो सिखों का दुर्भाग्य कि उनका कोई प्रतिनिधि उस नक़्शे पर विरोध करने के लिए वहां नहीं था । उस समय के भारतीय नेताओं जवाहर लाल  नेहरू, सरदार पटेल,  गाँधी जी जिन्ना इत्यादि ने उस नक़्शे पर अपनी सहमति दे दी और हस्ताक्षर कर दिए ।

विभाजन के पश्चात दुनिया भर के सिख, बार्डर के इस पार से दूरबीन से इस स्थान के दर्शन करते हैं । यहाँ पर पिछले कई बरसों से सिख यहां आकर ईश्वर से प्रार्थना करते थे की इस गुरुद्वार के अंदर जाने की हमें अनुमति मिल जाए ।

विभाजन के पश्चात किसी भी सरकार ने इस बात के यत्न नहीं किये की सिखों को यहाँ आने के लिए वीसा की जरूरत न पड़े । कुछ सिख संगठनों ने जब पाकिस्तान सरकार से इस बारे बात की तो पाकिस्तान ने कहा की आपकी सरकार ऐसा निवेदन ही नहीं करती तो हम क्या करें ।

हमारी सरकार अयोध्या के नाम को वोटो की दृष्टि से भुनाती है वैसे ठीक भी है अयोध्या करोड़ों भारतीयों के आदर्श भगवान् राम की जन्मभूमि है । नानक जी भी सभी भारतीयों की आस्था के प्रतीक हैं पर क्या नानक जी की यादगार का महत्त्व कुछ कम है ? यदि मोदी जी पाकिस्तान से ऐसा उपहार लाते की करतारपुर बार्डर मैंने खुलवा दिया है, तो करोड़ों सिखों के मसीहा बन जाते । गड़बड़ यह हो गयी की सिद्धू इमरान खान के दोस्त निकले और उन्होंने दोस्त को ऐसा नायाब तोहफा दे डाला की बार्डर बिना वीसा के खोल दिया । अब यह बात बीजेपी को इतनी आसानी से हजम कैसे होती तो इसके लिए सिद्धू को देशद्रोही करार दे कर असली मुद्दे से उन्हें श्रेय देने से इंकार कर दिया । अंध भक्त तो आँखें बंद करके बैठे ही हैं मोदी जी कुछ कहें और वो बखेड़ा खड़ा कर दें । यही हुआ, यह भारत सरकार की कमजोरी है की बार्डर पर भारतीय सेना के जवान मारे जाते है और भारत सरकार कुछ नहीं कर पाती । सिद्धू ने तो मना नहीं किया की जवाब में आप उन्हें ना मारें । आप एक बदले दस सर काटें, किसे एतराज हो सकता है ?

गले ना लगकर नाराजगी दिखाने से कुछ नहीं होता । नाराजगी दिखानी है तो इस्राईल की तरह दिखाएं । खुद तो रमजान में आतंकवादियों के साथ सीजफायर करके अपने जवान मरवाते है पत्थर बाजों को ना मारने को कहकर अपने जवान मरवाने से कौन सा अपने जवानो का मनोबल बढ़ाते हैं ?  सिद्धू के बाजवा को गले मिलने से जवानो का मनोबल गिरना कहते हैं । राफेल के जितने पैसों से हजारों सैनिको को बुलेटप्रूफ जैकेट मिल सकती थी पर उससे वोट नहीं मिलते ।

यदि सिद्धू के वहां जाने से इतनी बड़ी उपलब्धि मिली है तो उसे गद्दार कहना ओछी राजनीती है । वोटों के फायदे के लिए मोदी जी सर्जिकल स्ट्राइक का तो बहुत प्रचार करते है इससे क्या उपलब्धि मिली ? खुद मोदी जी बिना बुलाये पाकिस्तान के प्रधान मंत्री से मिलने गए उनके आने के बाद पठानकोट वाली घटना हुई क्या यह सिद्धू के गले मिलने से अधिक महत्त्वपूर्ण साबित हुई? सिद्धू को भला बुरा कहना राजनीती है, सच्चाई नहीं ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

2 thoughts on “नवजोत सिद्धू और गले मिलन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रवेंदर भाई , किया कहूँ, आप का लेख भारत सरकार की आँखें खोल देने वाला है.इस लेख को भारत के अछे से अछे अखबार में छपना चाहिए . मैं सिआसत में ज़िआदा पढता नहीं हूँ लेकिन लेकिन आप के लेख ने मेरी ऑंखें नम कर दी क्योंकि हमारा तो मक्का ही उधर रह गिया .इस लेख के लिए आप वधाई के पात्र हैं .

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय भाई साहब,
      सिखों के दुर्भाग्य से इतिहास भरा पड़ा है । सिख सबकी मदद के लिए सबसे आगे आते हैं मैंने देश विदेश में देखा है । विभाजन के समय सिखों के ऐतिहासिक महत्त्व के अधिकतर स्थान जैसे पंजा साहब, सच्चा सौदा स्थान, करतारपुर जहां जहां गुरु नानक देव जी ने भ्रमण किया बिना इसके महत्त्व को समझे इतनी आसानी से भारतीय नेताओ ने बिना आना कानी के अंग्रेजों की खींची लकीर के आगे समर्पण कर दिया । यदि उस समय जरा भी एक
      बार कह देते तो अंग्रेज मना नहीं करते । आज भी खुद केंद्र और पंजाब की भूतपूर्व और वर्तमान सरकारें इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जो नहीं देते । जब सिद्धू को ऐसी सौगात मिली
      तो बादल की बहू वर्तमान सरकार की मंत्री और कप्तान अमरिंदर ने भी बड़ी हाय तोबा मचाई, उसे नानक जी की भूमि से कोई मतलब नहीं,उसे मोदी को खुश करने से मतलब है

Comments are closed.