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ऋषिभक्त विद्वान मधुवर्षी प्रभावशाली कवि-हृदय भजनोपदेशक श्री नरेश दत्त आर्य

ओ३म्

आर्यसमाज में वेद ज्ञान पर आधारित अमृत वर्षा करने वाले अनेक भजनोपदेशक हैं, पंडित नरेशदत्त आर्य उनमें एक विशिष्ट भजनोपदेशक हैं। हमने पहली बार सन् 1997 में हिण्डोन सिटी में आयोजित पं. लेखराम बलिदान शताब्दी समारोह में उनके दर्शन किये थे और दो तीन दिन तक उनके भजनों का आनन्द लिया था। उनके गीत तब हमें बहुत ही प्रिय, मधुर एवं प्रभावशाली लगे थे। उस समारोह में उनकी भजनों की एक पुस्तक ‘‘भजनांजली भाग-1’’ का लोकार्पण भी किया गया था। इसके बाद भी अनेक अवसरों पर हमें इनके भजन सुनने को मिले हैं। इस वर्ष 3 अक्टूबर से 7 अक्टूबर 2018 तक वैदिक साधन आश्रम तपोवन-देहरादून के शरदुत्सव में आपको आमंत्रित किया गया। आप अपने पुत्र श्री नरेन्द्र दत्त आर्य के साध पधारे और पांच दिनों तक कई-कई बार कई-कई भजन सुनने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ। अभी हम उनके भजनों से तृप्त नहीं हो सके और चाहते हैं कि हमें पुनः इसका अवसर मिले। हमें यदि पुनः अवसर मिला तो हम उनके भजन व गीत सुनना चाहेंगे। पण्डित जी ऋषि दयानन्द के वेद प्रचार मिशन आर्यसमाज के लिये सर्वात्मा समर्पित व्यक्ति हैं। आजकल वह अस्वस्थ हैं और अत्याधिक कार्य करने के कारण उनका स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है। हम आशा करते हैं कि वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जायेंगे। हमें यह भी अनुभव होता है कि उनके जैसे समर्पित भजनोपदेशक आर्यसमाज में बहुत कम हैं। तपोवन आश्रम के मंत्री जी ने जब उनसे दक्षिणा की धनराशि का सकेत करने को कहा तो उन्होंने हमारे सामने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया और कहा कि आप जो देंगे वह उचित ही होगी। हमने कुछ भजनोपदेशकों के बारे में सुना है कि प्रायः ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करते हैं परन्तु जब दक्षिणा दी जाती है तो कहते हैं कि यह कम है और लगभग उतनी ही और दक्षिणा की मांग करते हैं। ऐसा उन आर्यसमाज के अधिकारियों के साथ भी होता है जो विगत 25-30 वर्षों से अधिकारी हैं और शताधिक उपदेशकों एवं भजनोपदेशकों को दक्षिणा देते आये हैं। हमें पंडित नरेशदत्त आर्य जी का यह पहलू भी बहुत ही सराहनीय एवं प्रशंसनीय प्रतीत होता है। उनका इस यश का विस्तार करने की हम आवश्यकता अनुभव करते हैं जिससे दूसरों को इसकी प्रेरणा मिले। हम अनुभव करते हैं कि जो भी आर्यसमाज उनको बुलायेगी वह उनके भजनों की गुणवत्ता से तो सन्तुष्ट होगी ही अपितु इसके साथ वह इनके सद्व्यवहार से भी प्रसन्न व सन्तुष्ट होगी।

पंडित नरेशदत्त आर्य जी का जन्म 1 नवम्बर, 1957 को उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले के गांव बहादरपुर में पिता श्री बलदेव सहाय तथा माता श्रीमती जमुना देवी जी से हुआ था। आपने कक्षा 8 तक की शिक्षा अपने गांव में तथा इसके बाद इंटर तक की शिक्षा 4 किमी. दूर एक गांव कीरतपुर में प्राप्त की। आपने भजनोपदेशक का कार्य आरम्भ से करने से पूर्व दो वर्ष तक एक वर्कशाप में लेथ मशीन पर काम किया है। आपके पिताश्री ऋषि और आर्यसमाज के दृण भक्त व अनुरागी थे अतः आप जन्म से आर्यसमाजी हैं। विधिवत् रूप से आप सन् 1973 में आर्यसमाजी बने। कक्षा 6 के दिनों से ही आपने भजन व प्रवचनों द्वारा आर्यसमाज का प्रचार करना आरम्भ कर दिया था। आप गर्मियों में स्कूल की छुट्टियों में प्रचार करते थे। आपने लम्बे समय तक मैजिक लालटेन के द्वारा भी प्रचार किया है। जिन दिनों में आप कक्षा 6 के विद्यार्थी थे, उन दिनों आपने आर्यसमाज के मंच पर भजन तुम्हारे दिव्य दर्शन की मैं इच्छा ले के आया हूं’ गाया था। जिस मंच से आपने यह भजन गाया था उस पर आर्यजगत् के दिग्गज गीतकार व भजनोपदेशक कुवंर सुखलाल आर्यमुसाफिर उपस्थित थे। यह बता दें कि लाहौर में जब कुवंर सुखलाल आर्य मुसाफिर जी के भजन होते थे तो नगर में कर्फ्यू जैसी स्थिति होती थी। आपने सन् 1973 से प्रवचन देना भी आरम्भ कर दिया था। पंडित नरेश दत्त आर्य जी तीन भाई एवं एक बहिन हैं। आपके तीन पुत्र व दो पुत्रियां हैं। सभी पुत्र व पुत्रियां विवाहित हैं।

आपने आर्यजगत् में सन् 1998 में सबसे पहले वैदिक रथ का निर्माण किया जो प्रचार की सभी प्रकार सुविधाओं से युक्त है। इसमें स्टेज है, माइक व स्पीकर हैं, लाइट की व्यवस्था है तथा गांवों में अंधकार से युक्त स्थानों पर इससे प्रचार किया जा सकता है। इसके साथ ही आपने इसमें विद्युत जनरेटर सहित इनवर्टर को भी लगा रखा है। इस रथ को आपने देश के अनेक राज्यों व नगरों में घुमाया है और भजनों व उपदेश से प्रचार किया है। आप अकेले ही प्रचार नहीं करते अपितु आपका पूरा परिवार प्रचार करता है। आपके सभी पुत्र व धर्मपत्नी भी किसी न किसी रूप में आर्यसमाज के प्रचार प्रसार में अपनी-अपनी सेवायें देते हैं। हम जब आपके गुणों, व्यक्तित्व, विचारों, भावनाओं तथा कार्यों पर विचार करते हैं तो आप हमें आर्यसमाज के अद्वितीय ऋषि भक्त लगते हैं। आपने अपनी इस छोटी सी आयु में जो कार्य किया है तथा जो भावना व प्रचार की लगन आपमें हैं, उसके सामने हमारा सिर झुकता है।

आप ऐसे भजनोपदेशक हैं जिन्होंने अनेक भजनोपदेशक तैयार किये हैं। हम उनमें कुछ भजनोपदेशकों के नाम यहां दे रहे हैं जिनके गुरु, प्ररेक, आदर्श तथा मार्गदर्शक आप ही हैं। जो भजनोपदेशक आपकी शिष्यमण्डली में हैं उनके नाम हैं श्री दिनेशदत्त आर्य, श्री कुलदीप आर्य, भीष्म कुमार आर्य, श्री अजय कुमार, श्री नरेन्द्र दत्त आर्य, श्री धीरेन्द्र दत्त आर्य तथा श्री जितेन्द्र दत्त आर्य। श्री अमित दत्त एवं श्री विनीत कुमार को आपने ढोलक वादक के रूप में तैयार किया है। हमने श्री नरेशदत्त आर्य जी को ढोलक बजाते हुए भी देखा है। देहरादून वैदिक साधन आश्रम तपोवन में इसी अक्टूबर 2018 माह में पं. सत्यपाल पथिक जी द्वारा भजन गायन के समय आपने ढोलक बजाई। आपके पुत्र श्री नरेन्द्र दत्त आर्य जी के भी आश्रम में अनेक भजन हुए। इन भजनों में ढोलक पर आपने संगति दी। अपने पुत्र के भजन गाते हुए आपका ढोलक बजाना हमें गहरी ऋषि भक्त का प्रमाण लगता है और इस अलौकिक व दुर्लभ दृश्य को देखकर प्रसन्नता व सुख की अनुभूति की है।

आपने देश के अनेक भागों में प्रचार किया है। हम कुछ राज्यों के नाम दे रहे हैं जहां आप कई-कई बार गये हैं। इन राज्यों के नाम हैं गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, असम, बंगाल, उत्तराखण्ड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश। आप इन राज्यों के अधिकांश नगरों में भी प्रचारार्थ गये हैं। आपने हिमाचल प्रदेश के कण्डाघाट आर्यसमाज को पुनर्जीवित किया है। आपका अनुभव है कि नगरों में प्रचार करने पर आर्यसमाजी लोग ही आते हैं। नये लोग नगरों में प्रचार करने पर कम जुटते हैं। गांव में प्रचार का आपका अनुभव यह है कि वहां के लोग आर्यसमाज के प्रचार में अधिक रूचि रखते हैं तथा प्रचार में पूरी सिद्दत से सम्मिलित होते हैं। हमारे बहुत से भजनोपदेशक गांवों में इसलिये नहीं पहुंचतें कि यहां सुख सुविधायें व दान दक्षिणा उतनी प्राप्त नहीं होती जितनी नगरों की समाजों में मिलती है।

पंडित नरेशदत्त आर्य जी की भजनों की चार पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इन पुस्तकों के नाम हैं भजनांजलि भाग 1 व भाग 2, रामायण सन्देश तथा गीता सन्देश। यह सभी पुस्तकें हिण्डोन सिटी से श्री प्रभाकरदेव आर्य जी द्वारा श्री घूड़मल प्रहलाद्कुमार आर्य धर्मार्थ न्यास से प्रकाशित हुई हैं। दिल्ली के आर्य प्रकाशन की ओर से इन सभी चार पुस्तकों का एक संग्रह प्रकाशित किया गया है। पंडित नरेशदत्त आर्य अनेक विषयों पर कथायें भी करते हैं। प्रमुख रूप से आप आयोद्देश्यरत्नमाला ग्रन्थ पर 3 महीनों तक कथा करने का रिकार्ड बना चुके हैं। सत्यार्थप्रकाश, रामायण, गीता, आर्यसमाज के नियम, अष्टांगयोग सहित यम व नियमों पर भी आप लम्बी लम्बी कथायें करते हैं। आपकी कथायें नीरस न होकर सरस व रूचिपूर्ण होती हैं। एक बार आपने मुम्बई में आर्यसमाज के नियम व यम-नियमों पर तीन दिन तक 24 घंटे की कथा की। यहां आप प्रतिदिन आठ घंटे कथा करते थे।

पं. नरेशदत्त आर्य जी एक सर्वात्मा समर्पित ऋषि भक्त एवं आर्यसमाज के उत्साही विद्वान एवं कवि हृदय के सद्गुणों से सम्पन्न व्यक्ति हैं। उनके प्रचार की शैली अति उत्तम एवं प्रभावशाली है। उनके शब्द श्रोता के हृदय पर प्रभाव डालते हैं। लोकैषणा एवं वित्तैषणा से भी आपने अपने आप को दूर रखा हुआ है। उन्हें जो द्रव्य व धन मिलता है उससे वह सन्तुष्ट हैं। उनकी योग्यता, प्रतिभा एवं हृदयस्थ ऋषि भक्ति जिसका वह प्रदर्शन नहीं करते, उस भावना वाले भजनोपदेशक आर्यसमाज में बहुत कम हैं। आर्यसमाज को उनके जीवन एवं स्वास्थ्य की रक्षा के लिये उनको सुख-सम्पन्न व सन्तुष्ट रखना चाहिये जिससे वह दीर्घकाल तक ऋषि मिशन की सेवा कर सके। पंडित नरेश दत्त आर्य जी आर्यसमाज की विभूति एवं शक्ति हैं। हमें उनका हर प्रकार से ध्यान रखना चाहिये। ईश्वर उन्हें अच्छा स्वास्थ्य एवं दीर्घायु करे, यह हम प्रार्थना करते हैं। ओ३म् शम्।

मनमोहन कुमार आर्य