नज़्म – नाराज़ हैं मेहरबाँ मेरे
नाराज़ हैं मेहरबाँ मेरे
अब आ भी जाओ, कि
अंजुमन को तेरी दरक़ार है
ढूँढता रहा
न मिला कोई तेरे जैसा, कि
महफ़िल तेरे बिना बेक़ार है
तेरा लिहाज़ तेरी जुस्तजू
तेरी आवाज़ में सुकूँ है, कि
तू इक अज़ीम फ़नकार है
इब्तिदा होती नहीं बज़्म
तेरी राह में निग़ाहें बिछायें, कि
तू ही दिलों की सरकार है
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
१८/०७/२०१८