मुक्तक/दोहा

नारी पर दोहे

नारी पर दोहे —

दुष्ट चक्षुओं से बचने को ,परदा करती नारि।
नारी सुलभ संकोच ही , काफी इसे सँभारि।।

परदा कर लेवे लाख पर , रक्षित न होती नारि ।
अन्तरचरित शक्तिबल से ही ,रक्षा पाती है नारि ।।

सदाचरण का बल जहाँ ,घूँघट का क्या काम ।
कपड़े की दीवार क्या ,रोके है मन अभिराम ।।

पतिव्रता सीता रही , शत्रु वाटिका बीच ।
निश्कलंक सीता रही ,अग्नि परीक्षा बीच ।।

अतिप्रणय और अप्रणय ,दोनों को अनुचित जान ।
मध्यमभाव ही नेक है , इसे ही समुचित मान ।।

धर्म अर्थ और काम मोक्ष , सब में नारी सहायिका ।
नारी रूप है शक्ति का ,स्वर्ग- नर्क पथ दायिका ।।

डा० नीलिमा मिश्रा

डॉ. नीलिमा मिश्रा

जन्म एवं निवास स्थान इलाहाबाद , केन्द्रीय विद्यालय इलाहाबाद में कार्यरत , शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मध्यकालीन भारत विषय से एम० ए० , राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से पी०एच० डी० । अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सहभागिता विशेष रूप से १६वां विश्व संस्कृत सम्मेलन बैंकाक २०१५ । विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में लेख गीत गजल कविता नज़्म हाइकु प्रकाशित इसके अलावा ब्लाग लिखना ,गायन में विशेष रुचि