गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

प्यास दिल की वो बुझाने आए
दो घड़ी पास बिठाने आए

खुश थी मैं अपनी ही तन्हाई में
अश्क क्यूं साथ निभाने आए

जो सियासत करते लाशों की
अश्क झूठे वो बहाने आए

बंद आंखें जो की दो पल मैंने
ख़्वाब क्यूं नींद उड़ाने आए

मैं नदी फिर भी मैं प्यासी ही रही
दिल ये सागर से मिलाने लाए

ना मसीहा न फरिश्ता हूं मैं
क्यूं मुझे सूली चढ़ाने आए ।

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - priyavachhani26@gmail.com