कविता

जब किसी रहीम से राम मिलकर आता है कोई

जो गीत मैं अपने वतन में गुनगुनाता हूँसरहद के पार भी वही गाता है कोई
मैं बादलों के परों पे जो कहानियाँ लिखता हूँवो संदली हवा की सरसराहट में सुनाता है कोई
उस पार भी हिजाब की वही चादर हैशाम ढले रुखसार से जो गिराता है कोई
मैं जून की भरी धूप में होली मना लेता हूँजब रेत की अबीरें कहीं उड़ाता है कोई
मेरे मन्दिर में आरती की घंटियाँ बज उठती हैंकिसी मस्जिद में अजान ज्यों लगाता है कोई
मुझे यकीं होता है इंसान सरहदों से कहीं बढ़कर हैजब किसी रहीम से राम मिलकर आता है कोई
सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com