कविता

बिहारी देश की शान है

राजनीतिक स्वार्थ में पड़कर
क्यों बोला ये आवेश में
कि बिहारी को नहीं रहने देंगे
भारत के कई प्रदेश में
आवाज उठी कभी महाराष्ट्र से
कभी उठी गुजरात में
अब मध्यप्रदेश की बारी आई
इस राजनीतिक खुराफात में
कह रहे कि बिहारियों ने
व्यवस्था को किया बेजान है
सुन लो कि बिहारी बोझ नहीं है
बिहारी देश की शान है
बिहार की छवि संपूर्ण जगत में
सदियों से ही अलग रही
बार बार बन कर के निशाना
आत्माएं हमारी सुलग रही
ऐसी बातों से खतरे में
अब भारत का संविधान है
बिहारी कहीं भी बोझ नहीं
बिहारी देश की शान है
न मानो तो चलो साथ
वैशाली के गणतंत्र में
महावीर की वाणी में और
विष्णु के पंचतंत्र में
हिन्द के शत्रु जो भी थे
सबकी थी बढा़ई परेशानी
यहां हुए थे शेर से वीर
और कुंवर से सेनानी
यहीं के खुदीराम से
शहादत की पहचान है
बिहारी कहीं भी बोझ नहीं है
वो तो देश की शान है
रामायण ने महाभारत ने
सदियों से महिमा गाई
शून्य की भाषा दुनिया को
थी आर्यभट्ट ने सिखलाई
नाट्यकला में ठाकुर का
परचम सदा प्रचंड रहा
विद्यापति का काव्यपूजन
अनवरत अखंड रहा
मत भूलो दिनकर को जो
सब कवियों का स्वाभिमान है
बिहारी कहीं भी बोझ नहीं है
वो तो देश की शान है
प्रथम राष्ट्रपति की जननी और
शुक्ल का सत्याग्रह है
यहीं के लाल मजहरुल
जुब्बा और अनुग्रह है
फिल्म जगत को झा जी ने
रौशन किया प्रकाश से
चित्रगुप्त ने बांधा सबको
संगीतों के पाश से
यहीं का वो प्रेमपुजारी
दशरथ मांझी महान है
बिहारी कहीं भी बोझ नहीं है
वो तो देश की शान है
जाने कितने महारथियों की
इस भूमि पर परछाईं है
स्वर कोकिला शारदा सिन्हा
इसी धरा से आई है
नहीं फैलाया नफरत हमने
कभी भी अपने देश में
न मानो तो देख लो
सहजानंद के संदेश में
हमने सदा ही बांटा प्रेम
देना सीखा सम्मान है
बिहारी कहीं भी बोझ नहीं है
वो तो देश की शान है

— विक्रम कुमार

विक्रम कुमार

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