उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग – 23 )

ममता की परीक्षा ( भाग – 23 )

बस सुजानपुर पहुँच चुकी थी । गांव के चौराहे पर पहुँच कर ड्राईवर ने बस घूमाकर पुनः जिधर से आई थी उसी तरफ को उसका मुंह कर दिया था । बस के रुकते ही सवारियां एक एक कर उतरने लगीं । अमर ने भी अपना बैग लिया और उतरने की तैयारी करने लगा । दुलारे काका उसके आगे ही कतार में थे और धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे । बस से उतरकर दुलारे ने वात्सल्य भाव से अमर की तरफ देखा और बोला ,” बेटा ! चौधरी रामलाल जी का घर यहाँ से थोड़ी दूर है । आगे अँधेरा भी है और रास्ता भी ख़राब है । तुम अभी गांव की गलियों से अंजान हो । बहुत तकलीफ होगी तुम्हें । मेरा घर यहीं करीब में ही है । दो मिनट रुको । अभी यह सामान रखकर आता हूँ फिर तुम्हारे साथ चलता हूँ । ”
” नहीं काका ! कोई बात नहीं । मैं यहीं पला बढ़ा हूँ । मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी । आप भी तो शहर जाकर थक गए होंगे । अभी आप आराम कीजिये । मैं सुबह आपसे मिलता हूँ । बसंती के बारे में आप कुछ बताने जा रहे थे । बात अधूरी रह गई थी न । सुबह मुझे बताइयेगा क्या हुआ था बसंती के साथ । राम राम काका ! ” कहकर अमर चौराहे से दाएं जानेवाली पतली सी गली की तरफ बढ़ गया ।
उसने दुलारे के जवाब की भी प्रतीक्षा नहीं की थी । उस गली में घुसते ही अँधेरे ने उसका स्वागत किया । जेब से मोबाइल निकालकर उसमें टॉर्च जलाकर वह धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा । थोडी दूर चलने पर अब रास्ता ही गायब नजर आ रहा था । बेतरतीब बने घरों के सामने से गुजरते हुए वह अंदाजे से चौधरी रामलाल के घर की तरफ बढ़ता रहा । आज दस साल बाद गांव आकर भी उसे ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई तबदीली नहीं हुयी है । कई घरों के सामने दिए के उजाले में लोग घर के बाहर ही भोजन करने की तैयारी कर रहे थे । कुछ उसे सशंकित निगाहों से देखते तो कोई उसे अँधेरे में ही घूरते हुए पहचानने का प्रयास करते । घरों में कोई कोई कमरा दिए की मद्धिम रोशनी से रोशन हो रहा था । शायद बिजली नहीं आई थी । अमर गांवों में चौबीस घंटे बिजली देने के सरकारी दावे की हकीकत प्रत्यक्ष देख रहा था । विकास तो उसने गांव में पहुंचते ही महसूस कर लिया था । दस साल पहले जिस हालत में वह गांव को छोड़कर गया था उसमें रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा था । एक घर के सामने से गुजरते हुए एक बुजुर्ग ने उसे आवाज दिया ,” कौन हो भाई ? कहाँ जा रहे हो इस अँधेरे में ?” अमर ठिठक पड़ा । वह जानता था यहाँ उनका जवाब देना आवश्यक है । बोला ,” राम राम काका ! पहचाना नहीं मुझे ? मैं अमर ! मास्टर रामकिशुन का नवासा । चौधरी रामलाल जी के घर जाना है । ”
” अच्छा ! अच्छा ! साधना बिटिया के बेटे हो ? ” बुजुर्ग ने पुष्टि किया ।
” जी काका ! आप सही समझे ! ” कहकर अमर आगे बढ़ा ।
अगले कुछ ही मिनटों में वह चौधरी रामलाल के घर के सामने था । घर के सामने विस्तृत जगह थी जहाँ चार खटिया पहले ही बिछी हुई थी । एक खटिये पर कुछ लोग बैठे आपस में कुछ बातें कर रहे थे कि तभी अमर वहां पहुँचा । उस घुप्प अँधेरे में भी उसने चौधरी रामलाल को पहचान लिया था । उनकी आवाज आज भी वैसी ही दबंग थी और वही उनकी पहचान बनी । उनके सामने खड़े होकर उसने कंधे से बैग नीचे उतारा और उनके पैरों को हाथ लगाते हुए बोला ,” राम राम काका ! आशीर्वाद दीजिये ! ”
” जुग जुग जियो बेटा ! लेकिन हम तुमको पहचाने नहीं । तनिक परिचय दे देते तो …….! वो क्या है न बेटा अब नजर तनिक कमजोर हो गई है । ” चौधरी ने असमंजस में भी उसे आशीर्वाद देते हुए पूछा ।
” जरूर बताएँगे काका ! लेकिन पहले हम आपको ये बता देते हैं कि हम आपसे सख्त नाराज हैं । और कहाँ गया उ बिरजुआ ! उहो हमको भूल गया । इतनी बड़ी बात हो गई और हमको कउनो खबर नाहीं ! अब हम इतना गैर हो गए थे का ? ” अमर ने ठेठ देहाती बोली में चौधरी से कहा !
अभी चौधरी कुछ जवाब देता कि तभी अमर की आवाज सुनकर घर के अंदर से बिरजू भागा हुआ आया और आते ही अमर के पैरों को स्पर्श करते हुए बोला ,” प्रणाम अमर भैया ! ईतनी रात गए ? ” उसके एक हाथ में अभी भी आधी रोटी थमी हुई थी । अमर की आवाज सुनते ही वह तुरंत उठ खड़ा हुआ था और जैसे था वैसे ही बाहर आ गया था । उसके हाथ में थमी रोटी देखकर अमर ने कहा ,” सब ठीक है । अभी तुम पहले भोजन कर लो । भोजन करते हुए बीच में कभी नहीं उठना चाहिए । अन्न देवता का अपमान होता है । ” अमर ने किसी बुजुर्ग की तरह उसे नसीहत देते हुए कहा ।
” कोई बात नहीं भैया । हम जानबूझकर कउनो थोड़े न किये अन्न देवता का अपमान । और अनजाने में हुई सब गलती भगवान माफ़ कर देते हैं । चलो ! हाथ मुंह धो लो और तुम भी बैठ जाओ ! गरम गरम रोटियां तैयार हो रही हैं । चलो सबसे पहले पेटपूजा और फिर बाद में कउनो काम दूजा …” कहते हुए बिरजू खुद ही अपनी बात पर ठहाका लगा पड़ा था और अमर का बैग उठाकर अपने कंधे में टांग लिया ।
” हाँ ! बेटा ! जाओ ! भोजन कर लो । बिरजू ने सही कहा है पहले पेटपूजा फिर कउनो काम दूजा ..! ” कहते हुए चौधरी ने भी बिरजू की बात का समर्थन किया ।
” अरे नहीं काका ! अभी समय ही कितना हुआ है । रात के नौ भी नहीं बजे हैं । और हम लोग शहर में रात ग्यारह के बाद खाने वाले हैं । इतना जल्दी हमसे तो कुछ नहीं खाया जायेगा । ” अमर ने प्रतिरोध किया ।
” बेटा ! इहाँ तो ग्यारह बजे आधी रात हो जावे है और बात कर रहे हो खाना खाने की । जाओ ! जो ही दो चार निवाले खा सको खा लो ! देर न करो ! ” चौधरी ने लगभग आदेशात्मक स्वर में कहा तो उसकी बात मानने के अलावा अमर के पास कोई चारा भी नहीं था ।
बिरजू का हाथ थामे हुए घर के अंदर चले गया ।
एक छोटी सी ढेबरी दरवाजे की चौखट पर रखी हुई थी जो बाहर फैले विकराल अँधेरे से अपनी जंग जारी रखे हुए थी । लेकिन अँधेरे को दूर तक खदेड़ पाने में असमर्थ वह कमजोर दीपक अपने सामर्थ्य अनुसार क्षेत्र को प्रकाशमान बनाये हुए था ।
अमर ने जैसे ही चौखट को पार किया कि तभी अचानक पूरा कमरा तीव्र रोशनी से नहा उठा ।
” देखा भैया ! आपके कदम कितने शुभ हैं ! आपके कदम इस चौखट पर पड़ते ही बिजली आ गई । नहीं तो बिजली का तो कोई माईबाप ही नहीं है । जब मन करे आती है जब मन करे चली जावे । कउनो ठिकाना नाहीं । ” बिरजू ने चहकते हुए अमर की तारीफ की थी ।
अमर ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और एक नजर पुरे घर पर डाली । बाहर घर के सामने जहाँ चौधरी रामलाल बैठे थे घर के सामने 200 वाट का बड़ा सा सादा बल्ब जल रहा था । दो बल्ब दालान में रोशन हो रहे थे । वो भी वही पुराने जमाने के अधिक वैट और कम रोशनी वाले सादा बल्ब थे । उसके अंदर के कमरे में भी एक बड़ा सा बल्ब रोशन था । उस कमरे के बाद अंदर आंगन था जिसके चारों तरफ कई कमरे बने हुए थे । आंगन में भी एक बड़ा बल्ब रोशन था ।
सब देखने के बाद अमर ने गंभीरता से कहा ,” कइसे ठिकाना रहेगा बिजली का जब इस तरह से बिजली का दुरुपयोग करोगे । कभी सोचे हो कि ई जो इतना बड़ा बड़ा बल्ब लगाये हो ई कितना बिजली जलाता है । और बिना जरुरत के सब बल्ब चालू रखे हो । शायद कउनो बल्ब का बटन भी नाहीं होगा बंद करने का । जब तक बिजली रहेगी यूँ ही सब बल्ब चालू रहेगा । रात भर बिजली रहेगी तो रात भर सब ऐसे ही चालू रहेगा । ”
तभी बीच में ही टपकते हुए बिरजू बोल पड़ा ,” ई में गलत का है भैया ? सब ही ऐसे करते हैं । ”
” यही तो बात है समझने की ! पहले तो ई बात मन से निकाल दो कि सब करते हैं एही लिए उ काम सही है । सब दहेज़ लेते हैं तो उ सही हो गया का ? नहीं न ? हर काम के पीछे अपना दिमाग लगाओ । अब आओ ई बिजली पर । ई रात भर बिजली रहकर समझ लो दोपहर में कट जायेगी । ठीक है न ? ” अमर ने जानना चाहा था ।
” और का ? सुबह नौ बजे चली जायेगी । बारह घंटे मिल जाय तो धन्यभाग गांववालन के । तुमरे शहर वालन जैसे थोड़े न कि चौबीसों घंटे बिजली शुरु रहे । ” बिरजू ने बताया था ।
” ठीक ! इसका मतलब कि बारह घंटे सरकार बिजली देती है और इस बारह घंटे में तुम इतनी बिजली खर्च कर देते हो जिसका सही से इस्तेमाल करो तो वही बिजली तुम 36 घंटे भी चला सकते हो । ” अमर ने समझाने का प्रयास किया ।
” उ कइसे भैया ? ” बिरजू ने दिलचस्पी दिखाई थी । ” उ ऐसे बिरजू कि समझो तुमने भोजन करने के बाद जरुरत नहीं होने की वजह से सब बल्ब बंद कर दिए तो उ बिजली बचेगी की नाहीं ? बचेगी न ? उ जीतनी बिजली बचेगी वही बिजली तुम सुबह नौ बजे के बाद दिन भर और रात भर भी उपयोग ला सकते हो । जब बिजली बचने लगेगी तो सरकार भी कटौती काहें करेगी ? इसलिए बचाना अपने हाथ में है । बचत का फायदा हमको ही होना है कि ई में सरकार का कउनो फायदा नाहीं । और हर बात में सरकार का दोष देना भी ठीक नाहीं । समझे ? एही लिए हम कह रहे हैं कि खुद भी बिजली और पानी बचाओ और दूसरों को भी बचत का फायदा समझाओ । अगर थोड़े दिन ही ऐसा कर लिए न तो समझो कि कहीं भी और कभी भी बिजली जइबे नहीं करेगी । ” आंगन में लगे नल से हाथ धोते हुए अमर बोला ।
तौलिया उसकी तरफ बढ़ाता हुआ बिरजू बोला ,” कह तो तुम सही रहे हो भैया ! लेकिन हमारे अकेले के बचाने से कितना बच जायेगी बिजली ! लोगन के समझाना कितना मुश्किल है ई हम जानत हैं । ”
” इसी सोच की वजह से तो यह परेशानी है । बदल लो इस सोच को बिरजू ! पहले खुद बदलो जमाना अपने आप बदल जायेगा । ” कहते हुए अमर बिरजू के साथ भोजन करने के लिए नीचे बिछे लकड़ी के तख्ते पर बैठ गया ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।