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अंतरिम बजट, अंतिम बजट या चुनावी वायदे

बजट घोषणाओं के जरिए मोदी सरकार ने इस बार मुख्य रूप से किसानों, गरीबों, मज़दूरों और मध्यम वर्ग को साधने की कोशिश की है. साथ ही प्रखर हिंदुत्व के एजेंडे के लिए प्रतिबद्धता भी जताई. उन्होंने आयकर में छूट की सीमा दोगुनी कर उस मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा लोगों को ख़ुश कर दिया जो पिछले चार सालों के दौरान छूट की सीमा न बढ़ने से भाजपा से नाराज बैठा था. हालांकि यह सिर्फ एक अप्रैल से 30 जून तक(तीन महीनों) का अंतरिम बजट है, वित्तमंत्री ने इनकम टैक्स से छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दी. बहुप्रतीक्षित यूनिवर्सल बेसिक इनकम(यूबीआई) तो लागू नहीं हुई लेकिन 15,000 रुपए मासिक आय वाले 60 वर्ष से अधिक आयु के 10 करोड़ श्रमिकों के लिए 3000 रुपए की मासिक पेंशन की घोषणा कर दी. निर्बल वर्गों के बुजुर्ग और निर्बलों लिए यह धनराशि किसी बड़े वरदान से कम नहीं है. भाजपा को उम्मीद है कि ये लोग भी चुनाव में आशीर्वाद भी उसी को देंगे.  नौकरीपेशा लोगों की तरह ही किसान भी भाजपा से नाराज बैठे थे. तीन महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव से पहले किसानों के आंदोलन से सरकार को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. वे फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दोगुना किए जाने की मांग कर रहे थे. सरकार की घोषणाओं से वे संतुष्ट नहीं थे. इसलिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने उन्हें लुभाने की पूरी तैयारी कर ली है. वित्त मंत्री ने दो हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों के खाते में छह हज़ार रुपये हर साल डालने की घोषणा की. इसके तहत दो हज़ार रुपये प्रति फसल, तीन फ़सलों के लिए दिए जाऐंगे. चूंकि यह फैसला दिसंबर से लागू होगा, इसलिए लग रहा है कि पहली किस्त के 2000 रुपए तो हर किसान के खाते में चुनाव होने से पहले पहुंच जाएंगे. पीयूष गोयल के मुताबिक़, इस योजना का फ़ायदा देश के तक़रीबन 12 करोड़ छोटे और ग़रीब किसान परिवारों को मिलेगा. आम तौर पर एक भारतीय परिवार में औसतन पांच सदस्य होते हैं. इस हिसाब से देखा जाए तो इस स्कीम से तक़रीबन 60 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा. 60 करोड़ लोग यानी वोट देने वाली आबादी का लगभग आधा हिस्सा.

 

गोवंश रक्षा के जरिए हिंदुत्व के एंजेडे पर काम इसी तरह राष्ट्रीय गोकुल आयोग की स्थापना कर ७५० करोड़ रुपये की धनराशि के जरिए राष्ट्रीय कामधेनु मिशन के तहत गौमाता की रक्षा का प्रण किया. यह भाजपा और संघ परिवार के हिंदुत्व के एजेंडे के एजेंडे को बढाने वाला फैसला है.

वित्त मंत्री ने अगले 10 सालों के विकास का खाका खींच कर न सिर्फ ख़ुद को आत्मविश्वास से भरपूर दिखाया, साथ ही लोगों की उम्मीदों को भी पंख लगा दिए. उन्होंने कहा कि अगले पांच सालों में 5 ट्रिलियन डॉलर(3600 करोड़ रुपए) की और 8 सालों में 10 ट्रिलियन डॉलर (यानी 7200 करोड़ रुपए) की अर्थव्यवस्था बन जाएगी.

अपने तक़रीबन एक घंटे 45 मिनट के बजट भाषण में कार्यकारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बॉलीवुड फ़िल्म उड़ी: द सर्जिकल स्ट्राइकका ज़िक्र किया और बताया कि वो सिनेमा हॉल में दर्शकों का जोशदेखकर प्रभावित हुए. ये फ़िल्म कुछ साल पहले भारतीय सेना की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक की पृष्ठभूमि पर आधारित है. फ़िल्म ने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया. इस फ़िल्म में अंध-राष्ट्रवाद (जिंगोइज़म) दिखाया गया है, जो लोगों को सिनेमा हॉल तक खींच पाने में सफल रहा.

कुल मिलाकर बजट में कृषि, सैन्य, वेतनभोगी और गैर संगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों को खुश करने की कोशिश हुई है. सूक्ष्म और मध्यम उद्यम से जुड़ी महिलाओं से अगर कुछ खरीदारी की जाती है तो जीएसटी में कुछ लाभ दिया जाएगा. बजट में नरेंद्र मोदी की सरकार ने हर क्षेत्र को कुछ न कुछ देने की कोशिश की है. अब सवाल यह उठता है कि जिस हिस्से को ध्यान में रख कर बजट में घोषणाएं हुई हैं, वो भाजपा को आगामी चुनावों में फायदा दिला पाएगी? जहां तक किसानी वर्ग की बात है तो कर्जमाफी का असर ऐसी घोषणाओं से कहीं अधिक होता है. सरकार देश के बड़े हिस्से में उपजे कृषि संकट से निबटने की कोशिश कर रही है. एक और दिलचस्प बात ये है कि इसी हफ़्ते देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्ता में आने पर सबके लिए एक न्यूनतम आय गारंटी स्कीम लाने का वादा किया था. दूसरी तरफ़ मोदी सरकार की स्कीम में सबसे ज़्यादा मुश्किल है ये पता लगाना कि किसे स्कीम का फ़ायदा मिलना चाहिए और किसे नहीं. भारत के ज़्यादातर हिस्सों में ज़मीन का लेखा-जोखा बहुत ज़्यादा विश्वसनीय नहीं है. इसके अलावा दूसरा बड़ा सवाल वही है जो हमेशा कायम रहता है- इतने सारे पैसे आएंगे कहां से?

अर्थशास्त्र मानता है कि कोई भी चीज़ मुफ़्त में नहीं मिलती. अगर किसानों को ये पैसे दिए जाएंगे तो किसी न किसी को इसे ज़्यादा टैक्स के रूप में चुकाना ही होगा. ज़ाहिर है ये चुकाने वाला होगा भारत का छोटा मिडिल क्लास. इसके अलावा पीयूष गोयल ने देश के बड़े असंगठित क्षेत्र के लिए एक पेंशन स्कीम की घोषणा भी की. वित्त मंत्री ने अपने भाषण में असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोगों की संख्या 42 करोड़ बताई. इस योजना में असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए 60 साल की उम्र के बाद हर महीने तीन हज़ार रुपये पेंशन का प्रस्ताव दिया गया है. ये स्कीम उन्हीं लोगों के लिए होगी, जिनकी मासिक आय 15 हज़ार रुपये या इससे कम है. हालांकि इस स्कीम का फ़ायदा उठाने के लिए लाभार्थी को अपने भी कुछ पैसे लगाने होंगे. असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले एक 18 साल के शख्स को हर महीने 55 रुपये जमा करने होंगे. सरकार भी उतनी ही रक़म अपनी तरफ़ से डालेगी, तभी वो 60 साल की उम्र के बाद इस पेंशन का हक़दार होगा. अब एक बार फिर इस स्कीम को लागू करने में कई बड़ी दिक्क़तों का सामना करना पड़ेगा. असंगठित क्षेत्र मे काम करने वाले एक बड़े तबके को कैश में भुगतान किया जाता है. इसके अलावा उन्हें मिलने वाले पैसों में भी बहुत असमानता है. ऐसी स्थिति में सरकार कैसे पता लगाएगी कि किसे इस पेंशन स्कीम के दायरे में रखा जाना चाहिए और किसे नहीं. अब रही बात सैन्य बजट की तो इसमें काफी बढ़ोत्तरी की गई है. जो देश की सुरक्षा और सैनिकों की सुरक्षा दोनों के लिए ही आवश्यक है. देश सर्वोपरि है, यह तो सभी मानेंगे.

फ़िलहाल मोटे तौर पर अगर देखा जाय तो प्रधान मंत्री मोदी ने एक बड़े वर्ग को फायदा पहुँचाने की घोषणा कर विपक्ष को धराशायी कर दिया है. उधर पश्चिम बंगाल में प्रधान मंत्री की सभाओं में अप्रत्याशित और बेकाबू भीड़ भी बहुत कुछ सन्देश देती है. यानी ममता दीदी के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश. अब देखना यह होगा कि असंगठित और नेता विहीन विपक्ष कैसे वर्तमान सरकार को हराने में सक्षम होती है. प्रधान मंत्री अपनी सभी सभाओं में अपनी उपलब्धियों और बजट के प्रावधानों की चर्चा करेंगे ही. जब संसद में मोदी मोदी के नारे लग सकते हैं तो भीड़ का क्या कहना! फिर भी बजट की बारीकियों को भी लोग अध्ययन कर ही रहे हैं. अगर सचमुच फायदा होता है तो जनता तो अपना हित ही सोचेगी न. एक बहुत बड़ी समस्या बेरोजगारी की है, साथ ही किसानों के उसके उपज की सही कीमत मिलने की बात है. कर्ज माफी मोदी सरकार भी यथासंभव कर ही रही है. देखना यह होगा कि हमारे भ्रष्ट सिस्टम में यह लाभ आम जनता तक कितना पहुंचता है. नोट-बंदी के बाद बहुत बड़ा मार रोजगार देने वाले छोटे छोटे उद्योगों पर पड़ा था. हाल के दिनों में बेरोजगारी के जारी आंकड़े भयावह स्थिति दर्शाते हैं. ये बेरोजगार लोग ही रैलियों में कुछ पैसों की लालच में भीड़ बढ़ाते है और असामाजिक गतिविधियों के साथ-साथ हिंसा पर भी तुरंत उतारू हो जाते हैं. अगर सभी को यथायोग्य रोजगार मिल जाए तो वे अपने ही काम में ब्यस्त रहेंगे. आलम यह है कि जो किसी भी प्राइवेट संस्थान में कार्यरत है वह ओवरलोडेड है क्योंकि मैन-पॉवर कम रखने का दबाव हर क्षेत्र पर है, ताकि लागत खर्च को घटाया जा सके. नयी तकनीक और ऑटोमेशन से भी मैन पॉवर की मांग घटी है. यह सब मूल-भूत समस्याएं हैं, जिसपर ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही जनसँख्या वृद्धि को हर हाल में रोकना होगा क्योंकि जो भी प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं वे कम पड़ते जा रहे हैं. बीच बीच में प्राकृतिक आपदा भी तबाही का कारण बनती है और उससे भी सरकार और आम लोगों को जूझना ही पड़ता है. एक और बहुत बड़ी समस्या जो विकराल रूप धारण करती जा रही है, वह है कचरा निस्तारण की और अशुद्ध और उपयुक्त जल को साफ और शुद्ध कर पुनरुपयोग करने की. इसके लिए सरकारी स्तर पर ही समाधान निकलने की जरूरत है, तभी स्वच्छ भारत और स्वच्छ पर्यावरण का सपना साकार होगा. एक और बात सबको उचित शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध कराने की है. यह हर नागरिक के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के बाद प्राथमिक आवश्यकता है. सभी सरकारें इस दिशा में काम कर रही है, पर शायद अभी पर्याप्त नहीं है. वायदे को धरातल पर उतरना जरूरी है. तभी होगा सबका साथ और सबका विकास!      जय हिन्द! जय भारत!.   – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.