कविता

छंदमुक्त काव्य

फागुनी बहार

“छंदमुक्त काव्य”

मटर की फली सी
चने की लदी डली सी
कोमल मुलायम पंखुड़ी लिए
तू रंग लगाती हुई चुलबुली है
फागुन के अबीर सी भली है।।

होली की धूल सी
गुलाब के फूल सी
नयनों में कजरौटा लिए
क्या तू ही गाँव की गली है
फागुन के अबीर सी भली है।।

चौताल के राग सी
जवानी के फाग सी
हाथों में रंग पिचकारी लिए
होठों पर मुस्कान नव नवेली है
फागुन के अबीर सी भली है।।

लहराती कदली सी
सावन की बदली सी
वसंत को आँचल में लिए
फूल से पहले की खिली कली है
फागुन के अबीर सी भली है।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ