लघुकथा

संयुक्त परिवार

जरा सोचो मेघना अपनी नाजो से पली चिरैया जिसे हमने सब सुख सुविधाओं के साथ पाला ,और अभी आगे भी तो पढना चाहति है । इतने बढे संयुक्त परिवार मे रह पाएगी ।वो भी बड़ी बहू बन सोचा है ।कितनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी । ना कर पायी तो … चिरैया से भी पूछो !
इतना अच्छा  परिवार ,इतना पढा लिखा संस्कारी लड़का ,इतना बड़ा  कारोबार , रूपया पैसा सब ही तो है ।और पढाने को वो राजी है अपनी शिक्षा आगे ले सकती है।
रही जिम्मेदारी तो  प्यार और अपनत्व से वो भी उठा लेगी मेरी बेटी ।संयुक्त परिवार के लिए हमे अपनी सोच बदलनी चाहिए ।पहले परिवारो मे सब साथ रहते थे ।कितना हँसी खुशी का माहौल रहता था ।और अब मॉ ही अपनी बेटियो के लिए एकल परिवार ढूंढ ती है ।ये सही नही ।कल हमारे लिए भी ऐसा ही सोचे तो …..।
और बिटिया  तुम्हारी कभी हा और कभी ना सुनकर दुविधा मे थी कि कही मै गलत तो नही कर रही । दिल को मजबूत कर ये कड़ा फैसला ले लिया था। ये सोचकर कभी किसी को मुक्म्मल जहाँ नही मिलता ।
लेकिन आज जब देखती हूँ प्यार अपनत्व से उनको अपनाया तुमने ।सारी जिम्मेदारी निभाते अपनी पति का साथ  सास ,नन्द से भरपूर प्यार ,आदर पाते मन बावरा खुशी से झुमने लगता है ।
खुश रहो मेरी चिरैया ।
बबीता कंसल 

बबीता कंसल

पति -पंकज कंसल निवास स्थान- दिल्ली जन्म स्थान -मुजफ्फर नगर शिक्षा -एम ए-इकनोमिकस एम ए-इतिहास ।(मु०नगर ) प्राथमिक-शिक्षा जानसठ (मु०नगर) प्रकाशित रचनाए -भोपाल लोकजंग मे ,वर्तमान अंकुर मे ,हिन्दी मैट्रो मे ,पत्रिका स्पंन्दन मे और ईपुस्तको मे प्रकाशित ।