कविता

गोधूलि बेला

दिन ढल गया देखो
आई शाम कितनी सुहानी
सूरज की रक्तिम लाली भी
छिप गई देखो बादलों के पीछे
धीरे -धीरे होने लगी साँझ
मंद -मंद बहे हवा पुरवाई
कितना सुहाना लगे ये मौसम
देखो आई सुंदर ये गोधूलि वेला
दूर गगन में उड़ते पंछी
लौटने लगे अपने घोसलों में
दूर जहां तक नज़र फैलाओ
देखो छाई हरियाली ही हरियाली
धानी चुनरिया ओढ़ के देखो
सज गई हमारी धरती रानी
साँझ दीप जले घर आंगन में
गूंजे देखो शंख नाद की मंगल ध्वनि
कितना सुंदर लगे ये नजारा देखो
आई शाम सुहानी मस्तानी
देखो आयी शाम सुहानी!
विनीता चैल

विनीता चैल

द्वारा - आशीष स्टोर चौक बाजार काली मंदिर बुंडू ,रांची ,झारखंड शिक्षा - इतिहास में स्नातक साहित्यिक उपलब्धि - विश्व हिंदी साहित्यकार सम्मान एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित |