कविता

सरकारी मदद

फाइलों के बोझ ढ़ोती , तंत्र की मारी मदद
उपलब्ध बस विज्ञापनों में , शुद्ध सरकारी मदद ।।

लोगों ने रुककर दे दिया था , एंबुलेंस को रास्ता
मंत्री जी के काफिले में , फँस गई , हारी मदद ।।

जब तलक थी जान तन में , थे तगादे बैंक के
मर गया फंदा लगा कर , हो गई जारी मदद ।।

बेबसों को जज नहीं , लाखों विचाराधीन हैं
मिल रही आतंकियों को , रात में सारी मदद ।।

खा रही है आज सेना , पत्थर उन्हीं के हाथ से
की थी पिछले साल जिनकी , बाढ़ में भारी मदद ।।

मुफ्त राशन बिजली पानी , जुमले सियासत के ‘समर’
कर रही पंगु वतन को , सब मुफ्त की मारी मदद ।।

समर नाथ मिश्र