पर्यावरण

‘फैनी तूफान’ : भविष्य के किसी बड़े खतरे की घण्टी तो नही?

जिस तूफ़ान का अनुमान मौसम वैज्ञानिकों ने करीबन हफ्ते भर पहले ही लगा लिया था, शुक्रवार को उसने उड़ीसा तट से भारत मे प्रवेश किया और पूरे उत्तर-पूर्वी भारत को गम्भीर रुप से प्रभावित कर भयंकर तबाही के निशान छोड़ गया। हालांकि भारत सरकार ,सेना और सुरक्षा कर्मियों ने अथक प्रयास से लाखों लोगों को समय रहते सुरक्षित निकाल लिया वरना नुकसान और भयावह हो सकता था। ऐसे ही अन्य प्राकृतिक आपदायें जिनमे चक्रवाती तूफान, आंधी,बाढ़, भूस्खलन, बर्फबारी आदि शामिल है ,इनकी वजह से आम जन जीवन पूरी तरीके से अस्त-व्यस्त हो जाता है। अभी मई का महीना शुरू हुआ है लेकिन गर्मी ने अपना असर अप्रैल से ही दिखाना शुरू कर दिया है।अब तो गर्मी में समान्यतः तापमान 40℃ से 45℃ तक रहता ही है,गर्मी की ये भयंकर तपिश भी आपदा की ही श्रेणी में आती है।मौसम वैज्ञानिकों की माने तो आने वाले सालों में ऐसी आपदाएं और भयंकर तबाही मचाएंगी।
अब प्रश्न उठता है कि इन बढ़ती आपदाओं के पीछे क्या कारण है ? तो इसका सीधा सा जवाब है “इंसान”।
यहाँ सबसे बड़ा खतरा इंसानो की बढ़ती आबादी है। पिछली एक शताब्दी में हमारी जनसंख्या करीब दो अरब बढ़कर 7.5 बिलियन के करीब पहुँच गयी है।परिणामस्वरूप पहले जहाँ वन थे,वहां इंसानी बस्तियां बनती गई।लकड़ी,घास,भोजन के संग्रह व खेती के विस्तार से लेकर घर ,भवन व निवास निर्माण जैसी गतिविधियों से घने जंगल विरल होते चले गए, जिसका पर्यावरण सहित पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा,जो आज आपदाओं के रूप मे हमारे सामने हैं। जनसंख्या वृद्धि की यह सुरसा आब तक आधे से ज्यादा जंगल को समाप्त कर चुकी है। विदेशी पत्रिका ” फ्यूचरिस्टिक” के अनुसार साठ और नब्बे के दशकों के बीच उष्णकटिबंधीय वनों का 20% हिस्सा नष्ट हो चुका था जो बढ़कर अब लगभग 35%-40% हो चुका है।
हमे जंगलो में जाने की जरूरत ही नही, यदि पर्यावरण का नुकसान होते हुए देखना हो तो ,अपने आस पास ही नज़र दौड़ाये तो पाएंगे कि आज से 4-5 साल पहले जितने पेड़ थे उनमें से अधिकांश पेड़ों को लोगों ने अपने फायदे के लिए काट डाले। जिन खेतो में 5-10 साल पहले खेती होती थी आज वहां बड़ी-बड़ी इमारतें बन चुकी है।जिन नदियों या तालाबो में हम नहाने जाया करते थे आज वो इतने दूषित हो चुके है कि उनसे दूर से ही दुर्गन्ध आती है।बीमारियां तेजी से बढ़ती जा रही हैं।सब्जी,दूध जैसे लगभग हर खाद्य पदार्थों में भी इंसानो ने मिलावट करना शुरू कर दिया है। इंसानी दखलंदाजी के अलावा पर्यावरणीय नुकसान के कुछ अप्रत्यक्ष कारण भी है जो समूचे जैव-मंडल को दूषित कर रहें हैं। समुद्र में तेलों का बिखराव,कारखानों और इंसानो का कचरा,रिवर्स बोरिंग से जमीन में केमिकल पहुँचा कर भूमिगत जल को दूषित करना आदि ऐसे बहुत से कारण है जिसकी वजह से आज पर्यावरण असन्तुलन की दशा से गुजर रहा है। पिछली सदी में तापमान में लगभग दो गुनी वृद्धि हुई है और यह लगातार बढ़ती जा रही है। प्रतिदिन लाखों नए वाहन सड़कों पर उतरते हैं, जिनसे निकलने वाला धुंआ भी पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है। यदि हम गहराई से अपने कर्मो का अध्ययन करें तो पाएंगे कि हम पैदा होने के साथ ही पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी प्रकार से नुकसान पहुँचाना शुरू कर देतें है और मरते दम तक ऐसा ही करतें रहते हैं। कुल मिला कर सभी बातों का निष्कर्ष ये निकलता है कि लगभग हर प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं की मुख्य वजह इंसान ही है। आज  मनुष्य केवल प्रकृति से लेना चाहता है और उसका हनन करना चाहता है ,प्रकृति के लिए कुछ बेहतर करने की सोच तो बस 1-2%  लोगों में ही देखने को मिलती है! बाकी लोगों का बस चले तो पूरी धरती को ही खोखला कर डालें। मानव की इसी लेने वाली सोच का नतीजा है ये भयंकर चक्रवाती तूफान जैसी आपदाएं। यदि वक्त रहते हम नही सुधरे तो आने वाला वक्त पूरी मानवता के लिए भयंकर तबाही लेकर आएगा , ऐसी तबाही जिसका निराकरण करना शायद किसी के लिए सम्भव न हो सके। जरूरत है अपनी सोच को बदलने की,हमे खुद के विकास के साथ प्रकृति के विकास के बारे में सोचना होगा ताकि हमारा जैव-मंडल और हमारी आने वाली पीढ़ी ऐसी अनापेक्षित आपदाओं से सुरक्षित रह सकें।
गौरव मौर्या

गौरव कुमार मौर्या

लेखक & विचारक पूर्व बीएचयू छात्र जौनपुर, उत्तर प्रदेश मो. 8317036927