कविता

घूसखोर

वो तो ठहरा घूसखोर
अपना वजूद रोज मिटाता
चंद सिक्को की खातिर
नैतिकता परे हटाता जाता।

उसके लिए आर्दश धन बल
धनबल के आगे नही जनबल
वो ठहरा धन का पुजारी
काम नही आता वहाँ आँसूबल
क्योंकि वो ठहरा घूसखोर।

कार्य अनेको होते मगर
करता उसी का जो लगाते धन
वरना पडे रह जाते वर्षो टेबुल पर
चाहे जीतने भी लगाते जोर
क्योंकि वो ठहरा घूसखोर।

कदम-कदम पर पटे पड़े
ऐसा लगता है घूसखोरो की नगरी हो
यहाँ श्मशान में भी जलने खातिर
पहले घूसखोरो को घूस देनी पडे
क्योंकि वो ठहरा घूसखोर।

घूसखोरो की मजे ही मजे
तनख्वाह कभी न उठानी पडे
घर से निकले ठाठ से
दफ्तर में भी काम न करना पडे
सब कमीशन खोरो ने केवल
घूस को फाईल बनायी है
क्योंकि वो ठहरा घूसखोर।

जब कभी पकड में आते
राजनीति षडयंत्र का हवाला देकर
काली कोट के पीछे छुप जाते
लंबा जाँच और पडताल चलता
किसी को न सजा होता
क्योंकि वहाँ भी घूस बचा लेता
क्योंकि वो ठहरा घूसखोर।
आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)