कविता

कह मुकरी

(१)
याद वही दिन हर क्षण आते,
अश्रु नयन में भर भर जाते।
बिन देखे अब रहा न जाता,
ऐ सखि साजन?नहिं प्रिय माता।।

(२)
नखरे करके मुझे सताते,
बार -बार छूकर मुस्काते।
लगते अच्छे दिल के सच्चे,
का सखि साजन?ना सखि बच्चे।।

(३)
हर सुख -दुख में साथ निभाये,
साथ    उसीके   जीवन  भाये।
कहे  बिना  सब   रहूँ  अनमनी,
का सखि साजन?नहीं, लेखनी।

(४)
मन का मर्म  समझ  सब  जाये।
हर  क्षण  अपना  धर्म  निभाये।
दुनिया   उसके    साथ   देखनी।
का  सखि  साजन? नहीं लेखनी।।

(५)
प्रतिदिन  मुझसे  मिलता  रहता।
अपने   मन   की  बातें  कहता।।
सुख-दु:ख  का   करता   संचार।
का सखि साजन?नहीं अखबार।

(६)
सुनकर   अनुपम   सच्ची   बातें।
हुए    सुखद  दिन   मधुमय  रातें।
अति   सुंदर   सह  जीवन   बीता।
का सखि साजन?नहिं सखि!गीता।।

(७)
हर पल पास हृदय के रहता।
खट्टी-मीठी    बातें   कहता।।
रही    सम्हाले   जैसे   सोन।
का सखि साजन?नहीं सखि,फाेन।

(८)
जब जब मिलूँ हृदय खिल जाये।
नौ  निधियाँ  यह  जीवन  पाये।
नेह – प्रेम  में   तन-मन  रंगा।
का सखि साजन?नहिं,माँ गंगा।।

(९)
प्राणों से भी बढ़कर चाहा।
पाकर अपना भाग्य सराहा।
सुलझा दे वो सभी पहेली।
का सखि साजन?नहीं, सहेली।।

(१०)
हरक्षण दिल से साथ निभाये।
सही-ग़लत का बोध कराये।
करता सुवासित जैसे इत्र।
का सखि साजन?नहिं सखि,मित्र।

(११)
जैसे चंद्र धरा को भाता।
वैसा प्यारा शीतल नाता।
करता रहता सदा भलाई।
का सखि साजन?नहिं सखि,भाई।

(१२)
अंग-अंग में आग  लगाये।
लाख भगाऊँ पर आ जाये।
छू  ले  तन, कैसी  बेशर्मी ?
का सखि साजन?नहिं सखि,गर्मी।

(१३)
मोहे मेरा मन मतवाला।
नयनों में डेरा है डाला।
रहता उसका दिल ये कायल।
का सखि साजन?नहिं सखि,काजल।

—  शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’

शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'

पिता- श्री सूर्य प्रसाद शुक्ल (अवकाश प्राप्त मुख्य विकास अधिकारी) पति- श्री विनीत मिश्रा (ग्राम विकास अधिकारी) जन्म तिथि- 09.10.1977 शिक्षा- एम.ए., बीएड अभिरुचि- काव्य, लेखन, चित्रकला प्रकाशित कृतियां- बोल अधर के (1998), बूँदें ओस की (2002) सम्प्रति- अनेक समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में लेख, कहानी और कवितायें प्रकाशित। सम्पर्क सूत्र- 547, महाराज नगर, जिला- लखीमपुर खीरी (उ.प्र.) पिन 262701 सचल दूरभाष- 9305305077, 7890572677 ईमेल- vshubhashukla@gmail.com