बाल कविताबाल साहित्य

नानी और ननिहाल

गरमी अपने संग लाती
लंबी छुट्टी हर साल
छुट्टी आते हि याद आते
नानी और ननिहाल

बैठते हि छुक छुक गाड़ी मे
दिखते अजब नजारे
पीछे भागे पर्वत नदियाँ
पेड़ और पौधे सारे

पटरी का आपस मे मिलना
मिल के अलग हो जाना
कितना प्यारा लगता उनका
नागिन सा लहराना

रेल में मस्ती करते करते
आ जाता है गाँव
कड़ी धूप में स्वागत करते
पेड़ के ठंडे छाँव

गुस्से वाले सूरज दादा
यहाँ नरम पड़ जाते
शायद नानी आगे उनके
तेवर कम पड़ जाते

लाड लड़ाते मामा मामी
खीर खिलाती मौसी
मम्मी का कोई जोर न चलता
चाहे कर लो कुछ भी

मामा के संग पोखर में
छप छप खूब नहाना
खट्टे मीठे आम रसीले
पेड़ से तोड़ के खाना

पगडंडी पर चलते चलते
किसी खेत में उतरो
ताजे ताजे खीरे ककड़ी
बिना नमक हि कुतरो

अनजाने सारे चेहरे पर
नाम से सब पहचाने
फिर भी इतना अपनापन
जैसे हों यार पुराने

खुले बड़े मैदानों में फिर
नए नए खेल खिलाते
गिरते पड़ते मस्ती करते
मन भर धूम मचाते

सोने से पहले नानी से
घंटों तक बतियाते
मेरी मम्मी भी छोटी थी
वो हमको बतलाते

मेरी सीधी सादी माँ भी
करती थी शैतानी
नानीजी से सुन के किस्से
होती बड़ी हैरानी

कहते सुनते नानी संग
आँगन हि में सो जाते
ना टीवी ना पंखा फिर भी
दिन वो बड़े सुहाते

जाते बीत हैं कितनी जल्दी
दिन ऐसे खुशहाल
छुट्टी आते हिं याद आते
नानी और ननिहाल ।।

— समर नाथ मिश्र