कविता

भावों के उपहार

कर-कर सेवा
पाई मेवा,
अब सारे मकरंद हो गए
झाड़ कटीले
वन-उपवन के
जो-जो उन्हें पसंद हो गए
दूर रहे
रस अलंकार सब
कब भावों के सुमन खिले
लय प्रवाह
सपनों का टूटा
यति, विराम उपहार मिले
हम दोहा तक
साध न पाए, वे कुण्डलियाँ छंद हो गए
पकी फसल पर,
बरसे ओले,
नष्ट हुआ किनका-किनका
एक घोंसले का
सपना था
बिखर गया तिनका-तिनका
खुशियों की
थम गईं आहटें,
गम के बोल बलंद हो गए
रात-रात
भर
जाग-जाग कर,
हम कतार में लगे रहे
ठाकुर जी
के
दर्शन होंगे,
इस आशा में जगे रहे
अपनी बारी
आते-आते
मंदिर के पट बंद हो गए
@बसंत कुमार शर्मा 

बसंत कुमार शर्मा, IRTS

उप मुख्य परिचालन प्रबंधक पश्चिम मध्य रेल 354, रेल्वे डुप्लेक्स बंगला, फेथ वैली स्कूल के सामने पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स, जबलपुर (म.प्र.) मोब : 9479356702 ईमेल : basant5366@gmail.com लेखन विधाएँ- गीत, दोहे, ग़ज़ल व्यंग्य, लघुकथा आदि