कविता

मेघों की सेना ( कविता )

मेघों की सेना
जब धरा तप्त हो जाती है
और त्राहि त्राहि मच जाती है
उत्तुंग गगन को छूने को
धरती की खाक बढ़ जाती है
तब शमन अनल का करने को
मेघों की सेना आती है
रथ पे सवार होकर वायु के
प्रेम सुधा बरसाती है
जब स्वेद लगे तन से बहने
भू जलविहीन हो जाता है
चाहे जितना पुरुषार्थी हो
मानव खुद में खो जाता है
गर्मी जब सिर चढ़ कर बोले
अमराई में कोयल डोले
जब गर्म हवा लगती बहने
धरती हरियाली खोती है
जब हरी भरी धरती बंजर सी
हो लगती ज्यूँ रोती है
तब जीवन फिर लौटाने को
मेघों की सेना आती है
रथ पे सवार होकर वायु के
प्रेम सुधा बरसाती है
वापस वह वैभव लाने को
सबका तन मन हर्षाने को
अब सूख चुके तरुवर में भी
नव कोंपल को लहराने को
बदरंग हुई धरती मैया को
चुनर हरी ओढ़ाने को
तत्पर कुदरत जब होती है
मेघों की सेना आती है
रथ पे सवार होकर वायु के
प्रेम सुधा बरसाती है

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।