मुक्तक/दोहा

मुक्तक

“मुक्तक”

गैरों ने भी रख लिया, जबसे मुँह में राम।
शुद्ध आत्मा हो गई, मिला उचित अभिराम।
जिह्वा रसमय हो गई, वाणी हुई सुशील-
देह गेह दोनों सुखी, राघव चित आराम।।

दर्शन कर अवधेश के, तरे बहुत से लोग।
राम जानकी मार्ग पर, काया रहे निरोग।
निर्भय होकर चल पड़ो, अंधेरी हो रात-
मंजिल मिल जाती सुबह, भागे तम का रोग।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ