कविता

जलन

एक नही हजार लिखूँगा
देश विदेश संसार लिखूँगा
जिसका दिवाना है सारा जहाँ
उसके लिए कविता हजार लिखूँगा।
जलने की मिशाल भी नया नहीं
बात लिखने की अदा नही
हाथी देखा नहीं कि बन बैठा कुकुर
लगे भौंकने जैसै फिजुल।
रास न आए मेरी सुन्दरता
एडिट करना मेरी मौलिकता
स्वंय की मर्जी मेरी जैसे छपूँ
पढ़ते है हजारो चाहे जैसे लिखूँ।
बात शब्दों की है तो पढ़ते रहिए
चँद मसलो पर सोचते रहिए
कापी पेस्ट से बचते रहिए
शब्द अपना बनाकर लिखते रहिए।
जल रहे अपने बेगाने
जिसे न जानू न पहचानू
शब्दों की यही महानता
थोड़ा थोड़ा पढ़ो मुझे
तेरा पढ़ना तो ही है मेरी कविता।
— आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)