कविता

ना हाथी है ना घोड़ा है

ना हाथी है ना घोड़ा है

ना ज्यादा है ना थोड़ा है
ये जीवन तो साथी मेरे
सुख दुख का जोड़ा है
कहीं कुछ घटा दिया रब
ने कहीं कुछ जोड़ा है
चलते चलते राहों में
ना जाने कब कहाँ कैसे
किस्मत को मोड़ा है
कुछ मिलता है जमाने
में साथी कुछ खोकर
कोई हीरो है यहाँ पर
और कोई तो जोकर है
किसी का नसीब जगा
तो वक्त ने किसी की
खुशनसीबी को फोड़ा है
अपनी ही आँखो के
सपनो के लिए साहब
अपनी ही नींदे रोड़ा है
किसी ने अपनाई मोहब्बत
किसी ने प्यार छोड़ा है
ना हाथी है ना घोड़ा है
थकने की बात ना करना
सफर अभी और थोड़ा है
सांसों संग जिंदगी का रण
कब कहा किसने छोड़ा है
जिसने हार मानी दुखो से
वही तो बनता भगोड़ा है
— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश