कविता

अपना हिंदुस्तान…

धन्य धन्य हो पांव पखारे जिसके विस्तृत सागर.
जिसकी माटी में रमने को आतुर रहे नटनागर.
बारी बारी आ देवों ने डेरा यहां जमाया.
जिनकी यश गाथा को ऋषियों मुनियों ने है गाया.
राम. कृष्ण और महादेव भी जिसके रहे दीवाने.
चार वेदों में पसरे हैं युग युग के अफसाने.
असुरों के संहार की खातिर जहां देवियां आईं.
नारी ही हैं शक्ति स्वरूपा सबको विश्वास दिलाईं.
राणा. शिवा औ सिख गुरुओं को जां से प्यारी माटी.
दुश्मन भी भौंचक्के रह गए जब जाने परिपाटी.
जांबाजों की बनी रही यह अद्भुत पाठशाला.
अरि दल भी हैरान हुए जब पड़ा कभी भी पाला.
उत्तर में हो खड़ा हिमालय करता ये ऐलान.
जग में है सबसे प्यारा अपना हिंदुस्तान.
देश से बढ़कर नहीं है कुछ पर सिरफिरे अनजान.
उनकी करतूतों का धुआं छू रहा आसमान.
अब नहीं सरकार को खामोश रहना चाहिए.
हरहाल में उत्पातियों को दंड मिलना चाहिए.

— उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।