कविता

आत्मरक्षा करेगी नारी

देखो बहुत सह लिए उसने जुल्मों-सितम,
अब आत्मरक्षा की ख़ातिर नारी वीरांगना कहलाएगी।

अपने आत्म सम्मान के बचाव में नारी,
अस्त्र शस्त्र उठाकर के  अपनी आबरु वो बचा पाएगी।

इस कलयुग में दुःशासन से बचने को,
द्रोपदी सी लाचार कृष्ण का इंतज़ार ना वो कर पाएगी।

उस दिन क्रोधाग्नि की इस ज्वाला में,
दहशत मिटाने को नारी
चण्डी-काली का रुप धारण कर जाएगी।

लड़ने का जज्बा होगा जब चित्त में,
तो फिर खुद की रक्षक
खुद ही नारी बन जाएगी।

स्वाभिमान की रक्षा करने को उस दिन
इन हैवानी दरिंदों का
सर वो शर्म से झुकाएँगी।

जब नारी के हाथों होगी पापी दुश्मन की चीर फाङ,
तो देखना उस ज़ुल्मी
की रुह तक भी काँप जाएगी।

ना होगी कोई निर्भया अब हवस का शिकार,
इन दुष्कर्मों की वारदातों पर अब लगाम नारी ही
जाएगी।

— शालू मिश्रा

शालू मिश्रा नोहर

पुत्री श्री विद्याधर मिश्रा लेखिका/अध्यापिका रा.बा.उ.प्रा.वि. गाँव- सराणा, आहोर (जिला-जालोर) मोबाइल- 9024370954 ईमेल - shalumishra6037@gmail.com