राजनीति

नागरिकता संशोधन कानून 2019

नागरिकता संशोधन कानून 2019 को लेकर जो समाज में दुष्प्रचार किया जा रहा है। उससे मुस्लिमों की नागरिकता एवं उनके अधिकारों का हनन होगा। यह पूर्ण रूप से असत्य है। इस कानून से किसी मुस्लिम ही नहीं अपितु किसी भी भारतीय नागरिक का कोई भी अहित नहीं है। इस कानून से भारत के किसी भी नागरिक का कोई भी लेना देना नहीं है। विपक्ष द्वारा मुसलामानों को इस कानून के द्वारा डराया जा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह नागरिकता संशोधन कानून 2019 के बारे में सही जानकारी प्रसारित करे व विरोध प्रदाशर््न के नाम पर दंगा करने वालों पर सख्त कार्यवाही करे। मैं स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ कि इस कानून पर मुसलमानों को बरगलाया जा रहा है। उन्हें अभी तक इस कानून के बारे में सही जानकारी नहीं है और जिन्हें है वो राजनीतिक स्वार्थ के कारण से बताना नहीं चाहते। एक ई-रिक्शा चालक से बातचीत हुई उसका नाम शहेआलम था मैने उससे पूछा यह जो कानून आया है जिसका मुसलमान विरोध कर रहे हैं यह क्या है ? उसने जो जवाब दिया वह आश्चर्यचकित करने वाला था। उसने कहा कि इस कानून के लागू हो जाने के बाद जो व्यक्ति जहाँ 70 वर्षो पहले रहता था यानि की उसके माँ-बाप, दादा-दादी उनको वही जाना पड़ेगा। हम दिल्ली में पैदा हुए। मुझे भी दिल्ली छोड़कर उ0प्र0 जाना होगा जहाँ के हम हैं अभी हमें ये भी नहीं पता कि हमें घर छोड़कर जाना होगा, बेचकर जाना है या सरकार उसका मुआवजा देगी कहने का मतलब है जिसके माँ-बाप जहाँ के थे उसको वही जाना होगा मैने उससे कहा आपसे ऐसा किसने कहा उसने कहा हमारे लोगों में ज्यादातर ऐसी ही चर्चा होती है। वाॅटसऐप पर मैसेज आते है वीडियो में बता रहे हैं। मैने उसे सही बताया तो उसने कहा कि हम मजदूरी करने वाले हैं इतना समझ नहीं आता जो हमें बता देते हैं वही सही मान लेते हैं। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण है। यह तो पूर्ण रूप से सही है कि विपक्ष द्वारा जनता को इस कानून की गलत परिभाषा बतायी जा रही है। भारत के नागरिकों को समझ लेना चाहिए कि यह कानून नागरिकता देने का है न कि किसी की नागरिकता छीनने का। नागरिकता संशोधन कानून 2019 के अनुसार अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के अल्पसंख्यक लोगो को नागरिकता दी जाएगी। धार्मिक आधार का दंश झेलने वाले हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसी एवं जैन समाज के लोगों को इसमें शामिल किया गया है। लेकिन सेक्युलर के नाम पर संविधान की दुहाई देकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। जब 1947 में धार्मिक आधार पर देश का बटवारा भारत-पाकिस्तान के नाम पर हुआ तो दोनों देशों ने अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वचन दिया था जो 1955 में नेहरू लियाकत समझौते के नाम से जाना जाता है लेकन इस समझौते का किस देश ने पालन किया यह सर्वविदित है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुए और वो समाप्त कर दिये गये। साल 1951 में भारत में हिन्दू 84.1 प्रतिशत, मुस्लिम 9.8 प्रतिशत थे। वही 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिन्दू 79.8 प्रतिशत तथा मुस्लिम 14.2 प्रतिशत जनसंख्या हो गयी। भारत में तो अल्पसंख्यक खूब फले-फूले वो सरकारी, गैर सरकारी शीर्ष पदों तक पहुचें परन्तु पाकिस्तान में जैसे अल्पसंख्यकों पर धार्मिक कट्टरवाद मानों जैसे कहर बनकर टूटा पाकिस्तान में साल 1947 में अल्पसंख्यक 23 प्रतिशत, मुस्लिम 77 प्रतिशत थे। जो साल 2011 में अल्पसंख्यक मात्र 3.7 प्रतिशत। मुस्लिम 96.3 प्रतिशत हो गये। बांग्लादेश में वर्ष 1947 में अल्पसंख्यक 22 प्रतिशत, मुस्लिम 78 प्रतिशत, वर्ष 2011 में में अल्पसंख्यक 7.8 प्रतिशत, मुस्लिम 92.2 प्रतिशत हो गये। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंग्लादेश में अल्पसंख्यकों का जीवन नर्क बना दिया गया। लोग अपने घर बार छोड़कर भागने को विवश हुए, जो भाग सकते थे वो भागे जो नहीं भागे उनकी महिलाओं के साथ जबरदस्ती सामूहिक बलात्कार किये गये। धर्म परिवर्तन किया गया। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने 2010 में रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान में प्रत्येक माह 25 बच्चियों, लड़कियों का अपहरण, जबरन इस्लाम में कन्वर्जन और बाल विवाह कराया जा रहा था। बाद के सालों में ये आंकड़ा और बढ़ गया। नए आंकड़ों के अनुसार सिंध में प्रतिदिन एक हिन्दू लड़की अगवा हो रही है। 1947 में पाकिस्तान में लगभग 1000 मंदिर थे, अब मात्र 20 मंदिर ही बचे है। मंदिरों को गिराकर मस्जिद, मजार, मदरसा और होटल बना दिया गये। 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में 70 प्रतिशत अल्पसंख्यक महिलाएं यौन शौषण का शिकार होती है। अकेले सिंध में हर महीने 20 से 25 अल्पसंख्यक लड़कियों का अपहरण कर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। वर्तमान की घटना है ननकाना साहिब के तम्बू साहिब गुरूद्वारे के ग्रन्थी भगवान सिंह की 19 वर्षीय बेटी को 28 अगस्त 2019 की रात को बन्दूक के बल पर उठा लिया गया। उसका जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया। तब तो धर्म निरपेक्षता का ढ़िढोरा पीटने वाले तथाकथित राजनेताओं ने आवाज नहीं उठायी। बांग्लादेश का कुख्यात शत्रु संपत्ति कानून हिंदुओं की लाश को नोचने वाला कानून है। 2000 में प्रकाशित एक रिपोर्ट ‘‘इन्क्वायरी इन टू काॅजेस एण्ड कान्सीक्वेन्सेज आॅफ दि प्राइवेशन आॅफ हिन्दू माईनाॅरिटी आॅफ बांग्लादेश’’ के अनुसार 9 लाख 25 हजार हिंदू परिवार इस कानून से प्रभावित हुए हैं। जिनकी संपत्ति इस कानून के अन्तर्गत जब्त की गयी है। उनमें नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन भी है। धार्मिक आधार पर तीन देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को यदि नागरिकता दी जा रही है तो लोगों को इसमें परेशानी क्यों है ? कोई भी देश अपनी नागरिकता के नियम बना सकता है। भारत के संविधान में भी संसद को ही नागरिकता के कानून बनाने का अधिकार है। यह कानून प्रक्रिया के तहत बनाया गया है। पहले लोक सभा फिर राज्य सभा के बहुमत से पास हुआ है। उसके बाद महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही कानून बना है। यह लोक तान्त्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। जो संविधान के अनुच्छेद 14 समानता व समता की दुहाई देते हैं। उनको स्पष्ट याद रखना चाहिए यह अनुच्छेद 14 केवल भारतीय नागरिकों को समानता व समता का अधिकार देता है। बाहरी लोगों को नहीं, जो देश के अभी नागरिक बने ही नहीं है। संविधान की गलत व्याख्या न पेश करें। जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल, अमरिंदर सिंह पंजाब, भूपेश बघेल छत्तीसगढ़, कमलनाथ म0प्र0, पी0विजपन केरल, सर्वगुण संपन्न हरिश्चन्द्र केजरीवाल दिल्ली कानून का विरोध कर रहे हैं और संविधान के अपमान की बात कर रहे हैं उनको स्मरण होना चाहिए कि संविधान की सातवी अनुसूची में संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में केन्द्र एवं राज्यों को विद्यायी शक्तियों का स्पष्ट रूप से उल्लेख है। संघ सूची की प्रविष्टि 17 के अनुसार नागरिकता से जुड़े सभी मामलों परकानून बनाना पूरी तरह संघीय सरकार के अधिकार में आता है। संविधान के अनुसार किसी भी राज्य के पास संघ द्वारा परिवर्तित उस कानून को खारिज करने का अधिकार नहीं जो विषय विशुद्ध रूप से संघ के अधिकार की परिधि में आता है। संविधान के अनुच्छेद 256 और 257 के तहत संसद द्वारा बनाए कानून और केन्द्र सरकार के दिशा निर्देशों को मानने के लिए राज्य सरकारे संवैधानिक तौर पर बाध्य है। संविधान एवं बाबा भीमराव अम्बेडकर को ढाल बनाकर अपनी राजनीति करने वालों को यह भी पढ़ लेना चाहिए कि विभाजन के समय डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर ने अपनी किताब ‘‘थाॅट्स आन पाकिस्तान’’ में स्पष्ट कहा था कि यदि पाकिस्तान बनना अनिवार्य है, तो तबादला-ए-आबादी आवश्यक है। यदि आबादी की अदला बदली नहीं की गयी तो भारत में 50 साल बाद वैसी ही स्थिति होगी जो आज है। विभाजन के बाद उन्होंने सभी हिंदुओं से पाकिस्तान छोड़कर भारत आने की अपील की थी और कहा था ‘‘आप इस्लामी राज्य में सम्मानपूर्वक जीवन नहीं जी सकोगे’’ संविधान का ढिंढोरा पीटने वाले व बाबा साहेब की फोटो लगाकर इस कानून का विरोध करने वालों को देश को बताना चाहिए वो गलत है या अंबेडकर गलत थे। विरोध करने वालों को बताना होगा वो अपने संविधान को मानते है या अंबेडकर द्वारा बनाये गये संविधान को, अम्बेडकर जी द्वारा बनाये गये संविधान के अनुसार किसी इस कानून से किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। सरकार को चाहिए कि वह विपक्ष द्वारा बौखलाहट में फैलाये जा रहे दुष्प्रचार का सामना करें व सही जानकारी लोगों तक पहुंचाये। विरोध के नाम पर हिंसक प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए। जो भी राजनीतिक संगठन या सामाजिक संगठन विरोध प्रदर्शन करें और उसमें सार्वजनिक संपत्ति, व्यक्तिगत संपत्ति का नुकसान हो उसकी भरपाई उसी से की जाए व मुकदमा दर्ज किया जाये। भारतीय मुसलमानों एवं गरीब नागरिकों को बिल्कुल भी ड़रने की आवश्यकता नहीं है। वे भारत के नागरिक थे, हैं और हमेशा रहेंगे। जय हिंद जय भारत

— सोमेन्द्र सिंह 

सोमेन्द्र सिंह

सोमेन्द्र सिंह " रिसर्च स्काॅलर " दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली शास्त्री सदन ग्राम नित्यानन्दपुर, पोस्ट शाहजहांपुर, जिला मेरठ (उ.प्र.) मो : 9410816724 ईमेल : somandrashree@gmail.com