हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – कुर्सी का कमाल 

भारतीय लोकतंत्र काफी आगे बढ़ चुका है। कुर्सी प्रधान राजनीति में कुर्सी की खींचतान जारी है। कुर्सी का सपना देखना हर भारतीय टोपीधारी का जन्मसिद्ध अधिकार है। कुर्सी के प्यार में अंधे प्रेमियों को कुछ नहीं दिखता। वे हर हालात में कुर्सी को हथियाने के लिए उत्सुक नजर आते हैं। कुर्सी का इतिहास बताता है कि उसे पाने की चाह में पुत्र ने पिता का वध किया है। कुर्सी पर मरने मिटने वालों ने सोनी महिवाल और हीर रांझा से भी एक कदम आगे बढ़कर कुर्सी के प्रति अपने समर्पण को सोदाहरण पेश किया है। जनमानस में जाहिर किया कि हम कुर्सी के लिए ही पैदा हुए हैं। वस्तुत: हमारे लिए अब राजनीति केवल कुर्सी तक पहुंचने का माध्यम भर है। हम असल में राजनीति की आड़ में कुर्सीगिरी करना चाहते हैं। कुर्सी के बिना नेता होना भी नेता न होने के बराबर ही है। जिसकी कुर्सी उसका राज आज के शासन का यथार्थ है। कुर्सी समस्त इच्छाओं की पूर्ति का जरिया है। कुर्सी सर्वशक्तिमान है। कुर्सी डूबते को तिनका है। कुर्सी राजनेताओं की तस्पया भंग करने वाली मेनका है। कुर्सी आराम देती है। यह कुर्सी सात करोड़ ही नहीं बल्कि खरबों जीतने का सुनहरा अवसर प्रदान करती है। और मजे की बात तो यह है कि इस कुर्सी पर बैठने के बाद सवालों के जवाब नहीं देने पड़ते बल्कि आरोप-प्रत्यारोप मढ़ने पड़ते हैं। कुर्सी प्रिय नायक कुर्सी से इस तरह चिपके रहते हैं जैसे महंगाई आम लोगों से चिपकी रहती है। कुर्सी अपने आप में देश का संविधान है। इसके चार पांव है। एक पांव व्यवस्थापिका है, दूसरा कार्यपालिका और तीसरा न्यायपालिका और चौथा पांव मीडिया है। कुर्सी पर बैठने वालों को चारों पावों का बराबर ख्याल रखना होता है। यदि एक भी पांव लड़खड़ाने लगा तो बड़ी दुर्घटना से गुजरना पड़ सकता है। चारों पांव कुर्सीधारी के वजन तले दबे रहते हैं। अमूमन बोझ के तले ज्यादा बोलने में समर्थ नहीं रहते हैं। चौथा पांव मीडिया कुर्सी का संतुलन बिगाड़ने के लिए तिल पापड़ होता रहता है। धूर्त कुर्सी उसे अपनी गोद में बैठाकर गोदी मीडिया के सम्मान से नवाज देती है। उसकी बोलती बंद हो जाती है। कुर्सीधारी कुर्सी पर बैठे-बैठे खजाना भरता जाता है। हुक्म देता जाता है। सारा लोकतंत्र एक कुर्सी पर बैठे-बैठे संचालित होता है। दिल्ली की कुर्सी देश की सबसे बड़ी कुर्सी कही जाती है। इस कुर्सी पर बैठने के बाद आप पूरे ब्रह्मांड की यात्रा नि:शुल्क कर सकते हैं। ये कुर्सी मिलते ही आप राजा बन जाते हैं। आपकी मालूमी छींक भी सुर्खी बन जाती है। आपको जीवन के सारे सुख एक कुर्सी पर बैठे-बैठे मिल जाते हैं। कौन कहता है कश्मीर में जन्नत है। जन्नत तो वहीं है जहां कुर्सी है।
– देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com