कविता

मैं हूँ नन्हां, तुम हो नन्हें

मैं हूँ नन्हां, तुम हो नन्हें,
हम दोनों ही बच्चे हैं,
तुम हो पंछी, मैं हूँ बाबा,
क्यों अन्तर हम में ऐसे हैं।
एक ही रब ने हम को बनाया,
अन्तर दोनों में डाला है,
तुम पंखों से उड़ान भरते,
मैंने पैर सम्भाला है।
चलो साथ हम दोनों खैलें,
जीवन का आनन्द उठायें हम,
तुम भी बच्चे, मैं भी बच्चा,
इस पल को जी जायें हम।
मेरे भोले चूज़े देखो……,
मेरे हाथों में आ कर……,
हो जाते मतवाले हो……।
अभी एक चूज़ा हो तुम,
फिर न जाने कहाँ जाओगे,
इक पिंजरें में बन्द हो कर,
बहुत तुम पछताओगे।
रब की यही नियति है,
उसने चूज़ा तुम्हें बनाया है,
कुछ माह के हो के चल बसोगे,
बस…. जीवन इतना पाया है।

— सीमा राठी

सीमा राठी

सीमा राठी द्वारा श्री रामचंद्र राठी श्री डूंगरगढ़ (राज.) दिल्ली (निवासी)