लघुकथा

भूख का सम्मान

सारी बीमारियों के वायरस आज एक जगह इकट्ठा हुए थे। आज से उनका विशेष अधिवेशन शुरू हुआ था जिसमें सदी की सबसे खतरनाक बीमारी का ताज किसी एक बीमारी के सिर पर सजना था । अधिवेशन शुरू हुआ । हैजा , चेचक , मलेरिया तथा पोलियो के बाद एड्स जैसी आधुनिक बीमारियों ने भी बढचढकर अपना पक्ष रखा और सबसे खतरनाक बीमारी का ताज हासिल करने के लिए अपना दावा प्रस्तुत किया लेकिन सभी जानते थे कि इनका दावा कितना खोखला है । इन्हीं बीमारियों के बीच एक कोने में गुमसुम सी ‘भूख ‘ भी बैठी हुई थी । उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था । सभी की नजरें अभी अभी अधिवेशन में शामिल हुई कोरोना वायरस पर टिकी हुई थीं । अकड़ से तनी कोरोना की गर्दन से अहंकार साफ झलक रहा था और उसे पक्का यकीन था कि आज इस सबसे प्रतिष्ठित ताज पर तो उसका ही कब्जा पक्का है । सभागृह में चल रहे टीवी पर खबरों में भी पूरे विश्व में कोरोना के बढ़ते आतंक की ही चर्चा थी कि तभी टीवी में दृश्य बदला । लॉक डाउन के अगले ही दिन से पूरे भारत में महानगरों से गाँवों की तरफ पैदल ही पलायन करते हजारों मजदूरों की भीड़ देखकर और उनकी बातें सुनकर व्यासपीठ पर मौजूद पंचों ने दो मिनट के लिए आपस में कुछ खुसरफुसर की और फैसला सुनाया ,” पिछली एक सदी में पैदा हुई सभी बीमारियों और महामारियों का पक्ष सुनने के बाद हम पंच एक नतीजे पर पहुँचे हैं जिसे बताते हुए भी हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कार रही है कि हम सभी बीमारियां इतनी खतरनाक होने के बावजूद , इतनी तबाही मचाने के बावजूद , हमें अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हममें से कोई भी आज सदी के इस प्रतिष्ठित ताज का हकदार नहीं बन पाया है , यहाँ तक कि आज सबसे ताकतवर व लाइलाज समझी जानेवाली बीमारी कोरोना भी उससे हार गई है । तो भाइयों ! अब और देर नहीं करते हुए आपको सूचित किया जा रहा है कि आज के इस अधिवेशन में सर्वसम्मति से सदी की सबसे बड़ी और खतरनाक बीमारी का प्रतिष्ठित ताज ‘ भूख ‘ को प्रदान किया जा रहा है । गर्व से तनी कोरोना की गर्दन अब झुक गई थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।