कविता

मां सबसे प्यारी लगती है

आँचल की मृदुल हवा से
खुशियां हम सबको देती है।
नेह लुटाती जीवन भर
क्या बदले में कुछ लेती है।
उस ममता की दौलत से,
हर दौलत छोटी लगती है।
मां होती जब साथ हमारे
कुटिया कोठी लगती है।
करुणा, दया, समर्पण से,
बच्चों का हर कष्ट मिटाती।
दुख-दर्द में अपने बच्चों की,
वो मरहम सी बन जाती।
त्याग, तपस्या, सेवा, ममता
का इक पूरा सागर है।
छोटी-छोटी खुशियों वाली
सुघर सलोनी गागर है।
बिन माँ के जीवन ही क्या यह
जहां अधूरा लगता है।
इस धरती में मां जैसा क्या
कोई भी हो सकता है।
पढ़-लिख कर कुछ बन जाऊं
माँ के सारे कष्ट मिटाऊं।
मेरी खातिर अगणित कष्ट
सहे सुख सुविधा दे पाऊं।
उसके सम्मुख काशी-काबा
सब चीज़े छोटी लगती हैं।
मुझको मेरी माँ जग भर में,
सबसे प्यारी लगती है।

— असिया फ़ारूक़ी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र