कविता

बासठ नहीं बीस-बीस

यह बासठ का हिन्द नहीं
बीस बीस का भारत है।।
सीमा पर गुस्ताखियों
की फौज सुनो जरा
यहाँ का हर बच्चा
सौ सौ पर भारी है।।
शुद्ध सनातनी है हम
कभी नही तनातनी हम
उठापटक यदि करोगे
आ जाओ सामने से
देखो कितना पराक्रमी हैं हम।।
देखो लद्दाख हो या सियाचीन
अपनी हद में रहो और रहो शरहद पार
सीख लिया है हमने हुनर
उकसाओगे तो होगे सरहद पार
घुसकर मारा है तुम्हें भी इसका
एहसास दिलाएगे घुसकर मारेंगे।।
अगर चाहते हो बचना
औकात में रहो वरना
मुश्किल है बचना
आ रहा है रंग में सेना
ले के बस्ती चोला
तेरी गुस्ताखीयों पर अब
चलने वाला है वोफोर्स का गोला।।
— आशुतोष 

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)