सामाजिक

संत

वसुधैव कुटुम्बकम की जो पहचान हमारी  है वह हमारे संत महात्मा की देन है। सर्वसजन हिताय सर्व जन सुखाय की परम्परा जो संतो मनीषियो ने बनाई वो हमारी सभ्यता का मूल स्तम्भ है। जिसका वर्णन संत कबीर,  तुलसीदास रविदास,  महर्षि वाल्मिकी, वेदव्यास  ने अपने अपने समय में ज्ञान दिया है। जिससे प्रेरणा हमेशा मिलती रहेगी।
आधुनिक भारत में भी संतो सन्यासी की महत्ता कम नहीं हुई है आज भी लोग संतो को आदर भाव से ही देखते है।हाँ कुछ ऐसे ढोंगी संतो ने बदनाम अवश्य किया है जिससे कुछ भ्रामक स्थितियां उत्पन्न हुई है। आदि काल में भी कुछ असुर शक्ति होते थे जो संतो को प्रताड़ित किया करते थे।आज उसकी जगह मानव ने ले रखी है जो साधु संतो को प्रताड़ित तो करते ही है हत्या जैसे जघन्य अपराध भी कर डालते हैं जो वीभत्सता और क्रूरता की पराकाष्ठा है।महाराष्ट्र में विगत दिनों संत की क्रूरतापूर्ण हत्या ने वीभत्सता की सारी सीमाएँ तोड़ दी।वह और भी हृदयविदारक तब हुआ जब पुलिस की मौजूदगी भी देखी गयी।महज राजनीति का केन्द्र बनाकर ऐसे निर्दोष हत्याएँ हमारी वसुघैव कुटुम्ब की सभ्यता पर एक प्रहार है जिसे वर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।कानून और प्रशासन का लचीलापन रवैया इसे गुनाहगारो को प्रसय न देकर कठोर कार्रवाई की ओर बढ़े ऐसा भी अभी तक प्रतीत नही हुआ है।अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि आखिर मंशा क्या है ।पालघर की घटना के बाद भी संतो की हत्या का सिलसिला जारी रहना सरकार और प्रशासन की विफलता की कहानी कह रही है जिस पर आने वाले समय में जबाबदेना होगा।चंद असुर को पालकर कोई सरकार नही चलाती जा सकती संतो को हर हाल में  इंसाफ चाहिये और सरकारो को देना होगा उनकी सुरक्षा।इतिहास गवाह है संतो को प्रताडित कर कोई खुश नही रहा है।
आज महाराष्ट्र के चंद असुरी प्रवृत्ति के लोगो और राजनीतिज्ञो को समझना होगा कि संत सही मायने मे हमारी संस्कृति की विरासत हैं। जिसके बिना सनातन धर्म का उत्थान संभव नहीं।जिस प्रकार शिक्षक ज्ञान बाँटते है उसी प्रकार संत संस्कृति और भक्ति बाँटकर हमें जीवन के मूल सत्य से परिचय कराते हैं।
— आशुतोष 

आशुतोष झा

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