कविता

डॉक्टर

भी महसूस किया है
उनके दर्द को
जो सबके दर्द देखते हैं
सारे अपने काम को
रख कर वो ताखे पर
लग जाते है दिन रात
तुन्हें बचाने को।
यूँ ही नहीं कहते
भगवान के अवतार उन्हें
मौत से लड़ते हैं निडरता से
डॉक्टर कहते है जिन्हें
मैं निशब्द हूँ
और रहूंगा
महानता वर्णित नहीं कि जाती
भगवान की कभी
इंसान तो स्तुति करते है
सर झुकाते है
फूल चढ़ाते है
लेकिन आज कल के
उनको गाली देते
थूक देते उनपर
प्रहार करते उनपर
सबसे निर्लज़्ज़ यह मानव
सबसे गुनहगार
क्यों इसे बचाते लेकिन हर बार
हे प्रभु! लेके अवतार।
— शुभम पांडेय गगन

शुभम पांडेय गगन

अयोध्या, फैज़ाबाद