लघुकथा

गरम चाय

सुजाता,अपने पति से शिकायत कर रही थी।सुनील,मैं घर
पड़े-पड़े बोर हो गई हूँ,क्या करूँ?क्या हुआ?तुम बोर क्यों हो रही हो?तुम्हारे पास मनोरंजन के सारे साधन है।मोबाइल,टी. वी,लैपटॉप।फेसबुक चलाओ।कुछ फ्रेंड्स बना लो चैटिंग करो।बोरियत दूर हो जाएगी।
नहीं-नहीं,सुनील फेसबुक सुरक्षित नहीं है।टी.वी देखकर मैं बोर हो चुकी हूँ।किताबों से भी मेरा मन उचट गया है।
ओह!सुजाता छोड़ो ये सब निराशा की बातें।समझदार बनों।कभी-कभी हम सभी के साथ ऐसा हो जाता है।इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं है।सब जल्दी ही ठीक हो जाएगा।नहीं सुनील,कुछ अर्थपूर्ण होना चाहिए।ओके जैसा तुम ठीक समझो करो।
सुजाता ने सामने वाली बस्ती से एक लड़की को पढ़ाने का और उसे मॉडर्न बनाने का निर्णय कर लिया। वह उस पर खूब ध्यान देने लगी।शाम को जब सुनील घर आता।उसे घर पर ही पाता।वह सुजाता से कहता।इस पर इतना ध्यान देना ठीक नहीं है।पर वह कहाँ सुनने वाली थीं?
वह अब सुजाता के सामने उस लड़की की खूब तारीफ करने लगा। वह पति के इस व्यवहार से परेशान रहने लगी।सुजाता मौसम ठण्डा है चलो बाहर चलकर गरम चाय पीते हैं।अच्छा उसे भी साथ चलने के लिए कह देना।कह कर वह तैयार होने चला गया।सुजाता पूरी तरह तैयार थी।सुनील ने उस लड़की के बारे में पूछा।मैंने उसे घर भेज दिया है,हमेशा के लिए।पर तुम्हारी बोरियत का क्या होगा?छोड़ो भी,मैं इतनी भी बोर नहीं होती।सच,हाँ।अब चलो भी गरम-गरम चाय पीते हैं।वह उसे देखकर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहा था।वह भी मन ही मन कह रही थी,चलो मुसीबत टली ।दोनों गरम-गरम चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे और अपनी-अपनी जीत पर मुस्कुरा रहे थे।
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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