लघुकथा

स्वस्थ्य-कर्मी

सोहन दोड़ा जा रहा था। पीछे-पीछे पड़ोस की राधा मौसी उसे पुकार रही थी। बेटा सुनो!तुम्हारी माँ को अस्पताल वाले ले गए हैं। बेटा रुको! मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।उसके कदम एकाएक रुक गए और वह रोता जा रहा था।आखिर आठ वर्षीय बच्चा ही तो था। वह आँखों में आँसू लिए मौसी का हाथ पकड़कर चल रहा था।अस्पताल की ओर जाते हुए वह मौसी से पूछ रहा था। मां को क्या हुआ था? बेटा तुम्हारे घर नन्ही परी आने वाली है। इसलिए मां को अस्पताल ले गए हैं। नन्ही परी का नाम सुनते ही सोहन खुशी से चहक उठा। अस्पताल पुहुँचते ही उसने बिस्तर पर माँ को लेटे देखा।वह खुशी से खिल उठा। माँ नन्ही परी कहाँ है? यह देखो बेटा तुम्हारी नन्ही परी। मां यह कहाँ से आई है? मां की आँखों में खुशी के आँसूं आ गए। बेटा यह नन्ही परी इन स्वास्थ्य- कर्मियों के कारण ही आ सकी है।अगर आज समय पर मदद ना पहुँचती तो तुम्हारी माँ और नन्ही परी दोनों भगवान के पास चली जाती।सोहन की आंखों में अनेक सवाल हिलोरे मार रहे थे।वह जानना चाहता था कि स्वास्थ्य-कर्मी ने किस प्रकार मां की सहायता की। हां बेटा जैसे ही हमने स्वास्थ्य-कर्मियों को सहायता के लिए फोन किया। उन्होंने इस महामारी के दौरे में अपनी जान की परवाह ना करते हुए भी तेरी माँ की सहायता की। मुझे अस्पताल में लाए अपना खून दिया।जब तक नन्हीं परी नहीं आई।उन्होंने मुझे संभाले रखा।माँ स्वास्थ्य-कर्मी इतने अच्छे होते हैं।हाँ यही सच्चे सुपर हीरो होते हैं। बेटा राधा मौसी बीच में ही बोल पड़ी। बेटे मम्मी को आराम करने दो। वह जोर से चिल्लाया! मैं भी बड़ा होकर स्वास्थ्य-कर्मी बनूंगा।इन सब की तरह ही सुपर हीरो बनूंगा।सभी स्वस्थ्य-कर्मी बच्चे की बात सुनकर गर्व से फूले नहीं समा रहे थे। उनके कानों में बच्चे के शब्द अभी भी गूंज रहे थे।मैं भी बड़ा होकर स्वास्थ्य- कर्मी बनूंगा।
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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