कविता

चंदा और चकोर

चंदा और चकोर
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तू चंदा मैं चकोर प्रिये
दिन रात तकूँ तेरी ओर प्रिये
तू बन के पतंग उड़े जग में
थामे मैं रहूँ तेरी डोर प्रिये

चंचल चितवन मदमस्त नयन
और होंठ हैं जैसे पुष्प प्रिये
गालों पे है सुर्खी मेरे लिए
नैनों में शरम की डोर प्रिये

निर्मल कोमल काया तेरी
खिंचे मुझको तेरी ओर प्रिये
मन पागल बैरी नींद भई
तकते ही होती भोर प्रिये

दिल में है तेरे क्या मेरे लिए
देखूँ मैं तुझे चहुँ ओर प्रिये
जग छूट जाए परवाह नहीं
छूटे न तेरे दिल का ठौर प्रिये

राजकुमार कांदु
स्वरचित / मौलिक

( अपनी प्रियतमा को याद करते एक प्रेमी की मार्मिकअभिव्यक्ति )

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।