कविता

बचपन

वो दिन बचपन के अच्छे थे

जब यारों संग मैदानों में
घंटों खेला करते थे
सर्दी गर्मी बारिश सब
ठेंगे पे झेला करते थे

एक दोस्त की कॉमिक्स को
पढ़ते सब बारी बारी
चंदा ले लेकर करते थे
क्रिकेट मैच की तैयारी

मिली किसी को नई सायकिल
सारे खुश हो जाते थे
एक टिफिन में सारे साथी
बांट पराठे खाते थे

उन झूठी मूटी बातों के
मौसम कितने सच्चे थे
वो दिन बचपन के अच्छे थे

— समर नाथ मिश्र