लघुकथा

धरती मैया

धरती मैया
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रामदीन के चारों बेटे अर्ध शिक्षित होने की वजह से देश के अलग अलग शहरों में रहते थे और मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते थे । रामदीन अकेले ही गाँव में रहकर खेतों में पसीना बहाता और कुदरत के कोपभाजन का शिकार होते हुए भी बड़े आराम से अपना गुजर बसर कर लेता । वह अक्सर बेटों से कहता ,” तुम सब बाहर इतना मेहनत करते हो । अगर यहीं रहकर मेरे साथ खेतों में मेहनत करो तो यह धरती मैया हमें कभी भूखे नहीं रहने देगी । ” लेकिन शहरी चकाचौंध के आकर्षण से बँधे उसके चारों बेटे हर बार उसकी बात अनसुनी करके शहर के लिए रवाना हो जाते ।

कोरोना महामारी के चलते अचानक लादे गए लॉक डाउन के निर्णय के बाद देश के करोड़ों मजदूरों की तरह रामदीन के चारों बेटे भी किसी तरह अपने गाँव पहुँचे ।
भोर की पहली किरण के साथ ही कंधे पर फरसा रखे रामदीन ने देखा ,उसके चारों बेटे घर के ओसारे में बैठे उसकी ही बाट देख रहे थे । उसे देखते ही उसके कंधे पर से फरसा लेते हुए बड़ा बेटा बोला ,” बाबू जी ! आप ठीक ही कहते थे कि जितना मेहनत हम शहर में रहकर करते हैं उतनी मेहनत अगर हम यहीं रहकर अपने खेतों में करें तो यह धरती मैया हमें कभी भूखों नहीं मरने देगी ! हम सबने तय किया है कि आज से हम भी आपके साथ खेतों में काम करेंगे । आप बस हमें बताते जाइये क्या करना है और आप आराम कीजिये ! “
उनकी बातें सुनकर रामदीन की प्रसन्नता का पारावार न रहा । आज सच में भोर की पहली किरण उसके लिए नए जीवन का संदेश लेकर आयी थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।