लघुकथा

काम की बाई

जया की बेटी जयंती का जन्मदिन था। रात्रि में बारह बजे व्हाट्सएप स्टेटस नहीं डाला। फेसबुक पर भी कुछ पोस्ट नहीं किया। अपनों परायों संबंधियों रिश्तों फ्रेंड्स ग्रुप मेंबर्स का मूल्यांकन करना चाहती थीं कि देखती हूं किन किन को मेरी बेटी का जन्मदिन स्मरण है। कोरोना के कारण कोई पार्टी सम्भव भी नहीं थी। शाम को केक काटने की फोटो अगले दिन अपने फैमिली ग्रुप में लगा दी। ननद का फोन आया क्या भाभी पहले नहीं बताया। में तो इसी शहर में थी आ जाती। खैर। कोई बात नहीं। पर भैया तुम और जयंती के साथ केक काटते समय यह साधारण सी बिना मैकअप घर की ही मामूली सी साड़ी में सिर पर पल्लू लिए कौन है। शायद काम वाली बाई हो सकती है। पर केक जयंती के साथ एक बाई कैसे कटवा सकती है। जया ने शालीनता से कहा दीदी वह काम वाली बाई नहीं है वह काम की बाईं है। मेरे घर के सभी नॉर्मल कार्य तो करती ही है। जब में बीमार पड़ती हूं तो जयंती एवम तुम्हारे भैया के लिए सब्जी परांठे वह ही बनाती है। मेरे लिए खिचड़ी भी वही बनाती है। उस समय शाम को दुबारा आकर ताज़ा खाना एवम मेरे लिए दलिया बना कर जाती है। आदरणीया दीदी जी कमला फोन पर टेक केयर के सन्देश एवम इमोजी नहीं भेजती। वह हमारे परिवार की सदस्य है। खिचड़ी दलिया खाना बनाने के लिए एक्स्ट्रा पैसे देती हूं तो मना कर देती है। मैम साहब मेरी मां बीमार होती है तब उनके लिए भी तो खिचड़ी बनाती हूं। नहीं मैम साहब आपसे खिचड़ी बनाने के लिए पैसे नहीं ले सकती हूं। रोने लग जाती है। हमारे दुख में व्हाट्सप्प फेसबुक का कोई भी साथ नहीं होता। इसलिए जयंती को केक कटवाने का अधिकार तो हमारे परिवार की सदस्य समान कमला काम की बाई को ही था दीदी। ननद रानी निःशब्द थीं।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी