संस्मरण

अलविदा बाबू जी

मेरा बेटा देवेन्द्र अपनी मातृभूमि लोहाघाट ‌‌(उत्तराखंड) घूमने लंबे समयांतराल बाद गया था।लाकडाउन लग जाने के कारण देवेन्द्र को काफी समय लोहाघाट में ही व्यतीत करना  पड़ा।लाकडाउन में जरा सी ढील मिलते ही देवेन्द्र दिल्ली आ गया।
 गांव में घर परिवार दादा-दादी, चाचा-चाची सबकी कुशलक्षेम बताया। कुछ समय बीत जाने के बाद मैं ने देवेन्द्र के पिता नरेंद्र जी से फोन करके पूछा कि मैं भी बच्चों के साथ लोहाघाट जाना चाहती हूं।  बाबू जी ( सुसर ) और मां जी देवर देवरानी सभी से मिलने का बहुत मन कर रहा है।इन्होंने जाने की अनुमति दे दी।तब मैं लोहाघाट फोन करके बाबू जी को बताया कि बेटी जान्हवी और बेटे देवेन्द्र के साथ मैं दिल्ली से लोहाघाट आ रही आप सभी से मिलने ।बाबू जी ने सीधे मना कर दिया बोले- बहू कोरोना काल के चलते कहीं यात्रा नहीं करो जहां हो वहीं सब कोई सुरक्षित रहो ।अपना और बच्चों का ख्याल रखो।कोरोना का संकट दूर होते ही मैं कोशिश करूंगा तुम्हारी सासु मां के साथ खुद दिल्ली आने की। नरेन्द्र भी जहां डियूटी पर तैनात वहां खुद का ख्याल रखने के लिए कहना।ट्रेन बस जैसे ही चलना प्रारंभ मैं दिल्ली आऊंगा। बाबू जी की बात मैं मान गई । कुछ दिनों बाद जब बाबू जी की तबीयत खराब हुई मैं ने फिर फोन पर कहा कि मैं आ रही लोहाघाट आपको लेकर दिल्ली आऊंगी यहां किसी अच्छे और बड़े डाक्टर को दिखाएंगे । लेकिन बाबू जी ने फिर मना कर दिया।बोले मैं दो- चार दिन में ठीक हो जाऊंगा ।मेरी चिंता नहीं करो ।इस भयावह वायरस से सुरक्षित बच्चों के साथ घर में रहो । एक बार फिर बाबू जी का कहना मानना पड़ा।छोटी देवरानी और मेरे देवर लगातार बाबू जी की देखभाल कर रहे थे और बाबू जी का हाल चाल रोजाना हमे फोन से बता रहे थे। मन बाबू जी को लेकर काफी परेशान था कि बाबू जी अस्वस्थ्य हैं और ऐसे में हमें उनके पास होना चाहिए पर इस वायरस कोरोना के चलते नहीं जा पा रही । इनकी छुट्टी भी इस साल मिलने की उम्मीद कम ही थी ऐसे में बाबू जी के पास हमारा होना और भी आवश्यक था।
12 नवंबर का दिन तो सामान्य रहा लेकिन शाम 6-7 बजे तक फोन बज उठा और जिस अनहोनी की चिंता मन ही मन सब को खाए जा रही थी। आखिर वही हुआ बाबू जी की तबीयत ज्यादा बिगड़ी और बाबू जी हमारे बीच नहीं रहे। इसी जानकारी के लिए वह फोन आया ।यह सुनते ही मैं सुन्न हो कर मैं फर्श पर गिर गई ।जान्हवी और देवेन्द्र ने मुझे संभाला और उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया।अब तक में दोनों बच्चे समझ चुके थे कि दादा जी दुनिया में नहीं रहे। आखिर आनन- फानन में उसी रात जैसे-तैसे हम दिल्ली वाले रूम में ताला लगाकर लोहाघाट (उत्तराखंड) के लिए निकल लिए।बाबू जी तो अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जीवन के आखिर पलों में बाबू जी से नहीं मिल पाने का मलाल सारी उम्र रहेगा ।जब भी याद आती है  बाबू जी की तो लगता है कि काश अपने यह नहीं कहा होता..…. कि कोरोना के चलते घर में रहो। ठीक होकर मैं ही दिल्ली आऊंगा सबसे मिलने। अब आप कभी नहीं आने वाले हैं बाबू जी। अब तो सिर्फ आपकी यादें हैं आपकी बातें हैं । आंखों में आसूं हैं जो थम नहीं रहे। मन से हर पल आपको नमन करती हूं। ब्रम्ह सेवा में लीन बाबू जी आपका आशीर्वाद हम कुटुम्ब जनों को आशीषों से अभिसिंचित करता रहे। अलविदा बाबू जी। दुनिया से गये हैं आप हम सबकी यादों से नहीं।आंखें नम हैं बाबू जी।दिल कहता है आप यहीं कहीं आसपास ही हैं।
— मीना सामंत 

मीना सामंत

कवयित्री पुष्प विहार,एमबी रोड (न्यू दिल्ली)