गीतिका/ग़ज़ल

आम बजट 2021

लोक-लुभावन वादे जिसमें दाना,चारा नहीं ,
यह आम बजट तो आमजन का प्यारा नहीं ।
बजट के गजट का दिमागी बुखार तो उतरा ,
अन्नदाता के सिर का बोझ तुमने उतारा नहीं ।
छोड़ कर शीशमहल झुग्गियों में आओ साहब
कोई दिन तुमने ऐसा अभी तक गुजारा नहीं ।
दुखों का सारा तूफान झेल रहा आम आदमी,
वरना आंखों से बहती यूं ही अश्क धारा नहीं ।
जिनकी वेतन लाखों में उनको सारी सुविधाएं
मध्यमवर्ग के लिए सोचा और विचारा नहीं।
इस्तेमाल किया करते हो आम आदमी का ,
आम आदमी बर्फ जैसा होता है अंगारा नहीं ।
गरीबों की रोटियां छीन रहे डंके की चोट पे,
खुदा होगा वो किसी और का हमारा नहीं ।।
— आशीष तिवारी “निर्मल”

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616