कविता

बेटियाँ

सीसक रही थी माँ आज
गर्भ मे बेटी को मार दिया
क्या कुसूर था नन्ही मासूम का
परिवार वालों ने बेरहमी से संहार किया !!
कई बार बेटी का नाम सुना, किन्तु
मौत की नींद सुलाकर, माँ को गुमराह किया
खुदकिस्मत जुड़वाँ बच्चे, बेटा व बेटी
दुआएं दे रही भाई, तेरे कारण मैं  धरती पर आया !!
बेटे के लिए शहनाई बजी
बेटियों पर जैसे मातम छाया
बिखर गई यादें उस बच्ची की
बेटी थी इसलिए दुर्व्यहार किया !!
चल पड़ी डोली इस नन्ही जान की
पिता कसाई चाचा, ना दो शब्द कह पाया
चरण स्पर्श उस भ्राता श्री को
मुड़ -मुड़ कर सबने दिक्कार दिया !!
ससुराल की पहली कदम पड़ी
कैसी कुलक्षणी तू घर लाया
गलती से गलती हुई लेकिन
हर इल्जाम इसके सिर पर आया !!
टूट कर बिखर गई ये बेटियाँ
कही ना प्रेम की भाषा मिला
याद माँ की आती, गिन -गिन कर निवाला खिलाती
डरो मत बेटी, तुझसे ही ये संसार मिला !!
— राज कुमारी 

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड