कविता

मिट्टी से पहचान हमारी

रंग – बिरंगे  फूल  खिले  हैं,

जग  जीवन  के  उपवन मे,
खुशबू   से  तर   मिट्टी  को,
भर  लें   अपने   दामन  में।
मिट्टी  से   पहचान   हमारी,
खिल उठी है क्यारी-क्यारी।
मिट्टी  की  सोंधी  खुशबू से,
महक   उठा   है  तन – मन,
यही   हमारा   जीवन -धन।
नये-नये  पत्ते  आये  वन में,
खुशबू   से  तर   मिट्टी  को,
भर  लें  अपने   दामन   में।
कठिन   परिश्रम  से   मिट्टी,
बन    जाती     है     सोना।
धन-धान्य से  भर  उठता है,
घर   का    कोना  –  कोना।
सुन्दर-सुघर  और   सलोनी,

रंगत     सब     पाते      हैं।
मिट्टी से  पहचान  बनाते हैं।
जड़ में मिट्टी,पकड़ में मिट्टी,
मिट्टी    है      जीवन      में।
खुशबू  से   तर   मिट्टी   को,
भर  लें   अपने   दामन   में।

— अनुपम चतुर्वेदी

अनुपम चतुर्वेदी

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, गजलगो व मुक्तकार,संतकबीर नगर,उ०प्र०