कविता

कोमलांगी हूं कमज़ोर नहीं।

मैं नारी हूं मां, बेटी, भगिनी, बहन दुलारी हूं।
स्वभाव से सरल निश्छल हूं, सब पर भारी हूं।
तोड़ना जानती हूं वर्जनाओं को बदलना जानती हूं
तक़दीर के लेख को…..
हे युग पुरुष कमज़ोर मत समझो
तुम्हारी भी सृजन हारी हूं।
अब नहीं रहना मुझे
 तुम्हारे इन बे फजूल के बंधनों में।
कोमलांगी हूं बेशक पर
वक्त पड़े तो  चिंगारी हूं।
रूढ़िवादिता के बंधन को तोड़ कर
अपनी पहचान बनानी है।
हर क्षेत्र में परचम लहरा सकती हूं।
ये बात सारे जग को बतानी है।
कांधे से मिल कर चलती हूं पुरुषों के
हर क्षेत्र में सफलता पाई हूं।
अबला लाचार नहीं हूं
अपनी राह खुद ही बनाई हूं।
टकराने का चट्टानों से बड़ा हौसला रखती हूं।
बहती हूं निर्झर नदियां सी सारे जग की तारी हूं।
वेद पुराण गीता हूं।
मैं मीरा राधा सीता हूं।
मैं प्रेम में जीती हूं हर पल
मैं सजना की परिणीता हूं।
मत छेड़ मुझे तू अभिमानी मैं  पवन निर्मल नारी हूं।
अस्तित्व मिटाने वाले के लिए मैं तलवार दो धारी हूं।
मैं बेबस और लाचार नहीं अब सहना अत्याचार नहीं।
निर्बल कमज़ोर समझ ना कभी मुझ बिन तेरा आधार नहीं।
मैं जननी हूं जग पालक हूं मैं प्रकृति की रखवाली हूं।
अस्तित्व मिटा दे जो मेरा वैसा कोई तलवार नहीं
— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- manidwivedi63@gmail.com