गीत/नवगीत

ये जीवन ना मुझको पाना है

तारों में माँ रहने दो मुझको
मुझको अब न जमीं पर आना है
इस दुनियाँ में मेरी कद्र न रही
ये जीवन ना मुझको पाना है,

जब तक ये जुल्मों सितम सहूँगी
तब तक रहेगा जीवन विराना
तेरी कोख में गर आ भी गयी
तुमको पड़ेगा मुझको गिराना
अंबर में बन चाँद की लाड़ली
मुझे सम्मान अपना बढ़ाना है
तारों में माँ रहने दो मुझको
मुझको अब न जमीं पर आना है,

मायका हो या मेरा सासरा
सदा से रही हूँ परायी यहाँ
निभाती रही सारी क़समें पर
समझा मुझे ना ये ज़ालिम जहां
रहकर साथ यहीं तारों के अब
मुझे अस्तित्व अपना बचाना है
तारों में माँ रहने दो मुझको
मुझको अब न जमीं पर आना है,

बढ़े इस कदर पाप और कुकर्म
दिल मेरा धरती पे अब न लगे
अब किसी रूप मे न किसी रंग मे
मेरी चूनर तारों से न सजे
आकाश गंगा के जल से नहा
मुझे दामन पावन बनाना है
तारों में माँ रहने दो मुझको
मुझको अब न जमीं पर आना है ,

तरसेगा इक दिन ये सारा जग
इक जन्मदात्री सुता पाने को
जिसकी कोख से जन्म लेते है
उस जननी की ममता पाने को
समर्पण बहुत कर चुकी अब तलक
आत्मसम्मान अपना जगाना है
तारों में माँ रहने दो मुझको
मुझको अब न जमीं पर आना है ।।

— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - anamikalekhika@gmail.com